शोभना सम्मान-2012

Friday, October 26, 2012

राजपूतो जागो वरना सदा के लिए सो जाओगे


ह सर्वविदित है कि सदियों से राष्ट्र की सुरक्षा, सभ्यता और संस्कृति के निर्माण का गुरुत्तर दायित्व क्षत्रिय समाज बखूबी निभाता आया है. अपने स्वाभिमान, त्याग और बलिदान के लिए क्षत्रिय जाति सर्वश्रेष्ठ रही है. न्याय और कर्त्तव्य के लिए अपने आपको न्योछावर करता आया है. राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देता आया है. शाका और जौहर क्षत्रियों की एक अद्भुत परम्परा रही है. देश की एकता और अखंडता के लिए बड़े-बड़े राज्य एवं रियासतों को भी त्याग कर देश की रक्षा में तत्पर रहा है. परन्तु आज़ादी के बाद बदली हुयी परिस्थितियों ने आज क्षत्रिय समाज को एक ऐसे दोराहे पर ला खड़ा किया है, जहाँ से अपनी स्वर्णिम परम्पराओं एवं आधुनिक विचार-धाराओं के अंतर्द्वंद में फंसकर रास्ते के लिए छटपटा रहा है पर कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है. हम अपने अतीत को वर्तमान में ढूंढ़ रहे हैं और सामने एक विभाजित, विपन्न, छिन्न-भिन्न क्षत्रिय समाज किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा है. दुर्भाग्य यह है की क्षत्रिय समाज वर्तमान परिस्थिति से अनभिज्ञ अपने धून में लगा है. हम यह भूल गए हैं कि हमारा समाज के प्रति क्या कर्तव्य है, लोग सिर्फ अपने स्वार्थ साधन में ही लगे है. फलस्वरूप हमारा समाज अँधेरे में ही भटक रहा है. आज इस राष्ट्र में क्षत्रिय समाज को राष्ट्र के मुख्य धारा से अलग-थलग रखने की साजिशपूर्ण कोशिश की जा रही है. क्षत्रिय समाज को हाशिये पर रखकर नया इतिहास रचने का निरंतर प्रयास किया जा रहा है, हमारी वीरता और बलिदान का न सिर्फ मखौल उड़ाया जा रहा है, अपितु हमारे पूर्वजों द्वारा देश के इतिहास में अपने त्याग और बलिदान से स्थापित आदर्शों को धुल-धूसरित करते हुए इसके ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर तरह-तरह के प्रहार किये जा रहे हैं. मगर यह समाज अपने ऊपर हो रहे इन तमाम साजिशपूर्ण हमलों से बेखबर परस्पर की वैमनष्यता से इस कदर ग्रसित है कि वीर रगों का उष्ण रक्त भी ठंडा पड़ता जा रहा है. अपने धर्म एवं कर्तव्य से विमुख होकर पतन के मार्ग पर बढ़ता जा रहा है. वैसी जातियां जो वर्षों से सत्ता से काफी दूर रही है, किन्तु सत्ता पाने की होड़ में नैतिकता को ताक पर रख तरह-तरह के साजिशपूर्ण तरीके से हमें कमजोर करके तथा उपेक्षित जातियों को प्रलोभन देकर गोलबंद कर सत्ता पाने में सफल हो जा रहे हैं. परन्तु इस परिस्थिति के लिए हम भी कम जिम्मेवार नहीं रहे हैं. पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय वी.पी. सिंह द्वारा मंडल कमीशन लागू किया गया. इससे हम और भी कमजोर पड़ गए हैं. इससे जो हमारा नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई नहीं हो पाई है, पुनः श्री अर्जुन सिंह जी द्वारा उच्च शिक्षा में पिछड़ी जातियों को आरक्षण देकर अपने समाज को ही नुकसान पहुँचाया है. हमारे कंधे पर बन्दूक रखकर हमें ही निशाना बनाया जा रहा है. फलस्वरूप न तो हम इसका प्रखर विरोध कर पा रहे हैं और न ही इसके विरोध में आवाज उठा पाते हैं. आज देश में लोकतंत्र स्थापित है तथा जहाँ जनख्या ही सत्ता का मापदंड है, वैसी स्थिति में हमारी एकता और महत्वपूर्ण हो जाती है. हम आज भी सामाजिक रूप से उन्नत हैं, किन्तु आपसी खींचातानी, आपसी वैमनष्यता ने हमें कमजोर कर दिया है. वहीँ अन्य कमजोर जातियां गोलबंद होकर हमारे विरुद्ध खड़ी होकर हमें ही चुनौतियाँ दे रही है और हमें पटखनी देकर सत्ता हासिल करने में कामयाब होती जा रही है. इस प्रकार इस विशाल देश में हम अपने ही घर में बेगाने होकर रह गए हैं. देश कि एकता एवं अखंडता का नारा बुलंद कर सरकार सत्ता में आती है, किन्तु सत्ता में आते ही वह हमें भूल जाती है तथा हमें हाशिये में लाकर खड़ा कर देती है. आरक्षण देकर अयोग्य व्यक्तियों को सरकारी पदों पर नियुक्त करने में लग जाती है और अगड़ी-पिछड़ी, दलित-महादलित जातियों का राग अलापने लगती है. इस स्थिति में हमें यह लगने लगा है कि हम हिन्दुस्तान में नहीं अपितु एक गुलाम देश में रह रहे हैं जहाँ हमारी कोई अहमियत नहीं है. अतएव हम यह सोचने को बाध्य हैं कि हम त्याग तो जरूर दिखलाते हैं, लेकिन हमारी अहमियत क्यों नहीं समझी जाती है. हमारा इस्तेमाल होता है और फिर हमें हाशिये पर धकेल दिया जाता है. अतः बदली हुयी परिस्थिति में हमें संगठित होकर अपने गिरते अस्तित्व के लिए संघर्ष के लिए तैयार एवं तत्पर होना अनिवार्य हो गया है. हमें एकजुट होकर हमारे विरुद्ध हो रहे साजिशपूर्ण कार्रवाई का प्रतिकार करना होगा. आपसी वैमनष्यता को भूलकर भाईचारे का सौहार्दपूर्ण वातावरण तैयार करना होगा तथा अपनी गिरती हुयी मर्यादाओं को पुनर्स्थापित करना होगा. आप जानते हैं कि संगठित राजपूत शक्ति सदैव ही अजेय रही है और आज भी है. जय राजपूत एकता.

लेखक- श्री रंजीत सिंह परमार 




Tuesday, October 23, 2012

मन में बसेंगे राम


(आप सभी को रामनवमी एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ)


राम  ने  रावण  मारा,  किया  पाप  का  अंत 
राम-सिया की कथा लिख, बन गए कई संत
बन  गए  कई  संत,  राम की महिमा  न्यारी 
नाम  इनका  जप  लो, मिटेगी  विपदा सारी 
सभी  का  मंगल   होवे,   करिए   ऐसे  काम 
मन  पावन   जो   रखोगे,  आय  बसेंगे  राम 
लेखक- सुमित प्रताप सिंह 

Tuesday, October 9, 2012

भारतीय नारी


मेरी आँखों में क्रोध की ज्वाला 
यू ही नही भड़क रही है
सामने है दुश्मन हजारो
चिंगारी ह्रदय में सुलग रही
शक्ति का इन्हें क्यू ना हो गरूर
इनको सबक सिखाना जरुर है
भारतीय नारी क्या होती है??
वो चंडी वाला रूप दिखाना जरुर है
बन दुर्गा आज इतिहास रचाऊँगी मै
कांपेंगे थर- थर आज शत्रु सारे
अपनी आण-बाण-शान की खातिर
रण भूमि पर इन्हें गिराउंगी मै....


कुंवरानी मधु सिंह
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