शोभना सम्मान-2012

Thursday, January 23, 2014

क्षत्रिय हुँ

क्षत्रिय हुँ, रुक नहीँ सकता ।
क्या है ये तुफान, इन्द्र का वज्र
आ जाये तो भी झुक नहीँ सकता ॥

मत करो झुठी कल्पना की मे डर जाउँगा ।
श्री राम का वँशज हुँ एक रावण तो क्या,
हजारो का सामना भी कर जाउँगा ॥

थोङा सा सिलसिला रुक क्या गया बलिदान का ।
पुरा का पुरा कुटुम्ब उठ खङा हो गया शैतान का॥

अरे हम वो है जिन्होने शरणागत
कबुतर को भी बचाया था ।
और कुँभकरण जैसे राक्षश को भी
अपने बाणो पे नचाया था॥

माता सीता के सत के तिनके
ने रावण को डरा दिया ।
और द्रोपदी के तप ने दुश्शासन
को भरी सभा मे हरा दिया ॥

अरे हम आज भी वो ही छ्त्रपति
शिवाजी के शेर है ।
बस भूल गये है अपने क्षात्र धर्म को
बस उसे अपनाने की ही देर हैँ ॥

जय क्षत्रिय ॥
जय क्षात्र धर्म
लेखख-हरीनारायण सिँह राठौङ
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