मुझे लगता है की कोई फायदा नही निरर्थक बहस का....बात अगर हम अपने समाज की करें ,,,वहां लड़कियों को सँभालने और एक करने की करें तो ज्यादा अच्छा हो
हम संस्कार बाँटने की बाते तो बहुत करते हैं संस्कार केवल कपड़ो के पहनने से नहीं ,,,विचारों को अपने व्यवहार में डालने से आयेंगे,,,कोई भी माता-पिता नही चाहते कि उसके बच्चे अच्छे न बने या उनका नाम रोशन न करें,,,,हर एक की यही इच्छा होती है ,,लेकिन आज की आधुनिकता हमारे बच्चों पर हावी हो जाती है ,,,,परिणाम......सामने ....
मैं लड़कियों की स्वतंत्रता की बात को मानती हूँ,,,आजादी होनी चाहिए लेकिन दायरे में ...आज जिस तरीके से आजादी को गलत ढंग से नई युवा पीढ़ी ले रही है ,,उसके परिणाम अच्छे नही हैं न ही आगे होंगे....विचारों को आगे लाओ ,,देश की प्रगति में भागेदारी निभाओ...यह नही की रात को बीच सड़क पर शराब के नशे में पड़े रहो....यह न तो हमारी सभ्यता को शोभा देता है न हमारे संस्कारों को....
क्यों भूल रहे हो की हम राजपूत तो अपनी बहनों ,,बेटियों की आबरू के लिए अपने प्राण तक दे देते थे...उनकी रक्षा करना हमारा परम धर्म होता था,,,शोभा है लड़कियाँ हमारे घर की ,,तो उन्हें शोभा ही बनाये रखो ,,बेवजह उनका मजाक मत बनाओ.....
जहाँ तक लड़कियों की आज़ादी की बात है उन्हें आज़ादी मिलनी चाहिए अपने जीवन के फैसले लेने की लेकिन सहमती के साथ....आज हमारे समाज में जरूरत है लड़कियों को मजबूत और अपने पैरों पर खड़े होने की...सामाजिक हालातों से शिक्षा ले क़ि कैसे हम इन हालातों में अपने आपको सुरक्षित रख,,,आगे बढ़ सकते हैं,,,,
मैं समझती हूँ क़ि जब घर क़ि बेटियां और माँ मजबूत हो ,,,तो उस घर और समाज को कोई बाधा नही आ सकती....तरक्की के रास्ते खुलते चले जायेंगे...
द्वारा - सुश्री शिखा सिंह
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