शोभना सम्मान-2012

Tuesday, December 17, 2013

क्षत्रिय तो क्षत्रिय है

क्षत्रिय तो क्षत्रिय है ।
वरना 
क्षत्रियोँ जैसे कपङे पहनने से बोलने से , रहन सहन से खान पान से ,नामकरण से 
उपनाम लिखने से राज पद तक पाने से, क्षत्रियोँ के साथ रिस्ते जोङने से अगर कोई 
क्षत्रिय बन जाता तो आज तक हमारी सँख्या हिन्दुस्तान मे चार गुना हो जाती ।

ये क्षत्रिय समाज के लिये गौरव की बात है की आज लोग हमारी परम्पराऔ और
रहन सहन का अनुसरण कर रहै है। पर क्षत्रिय समाज को हासिये पे
धकेला जा रहा है। पर इसमे कुछ हद तक समाज के लोगो
का भी दोष है क्योकी हमने भी अपनी परम्पराऔ और सँस्कारो का त्याग
किया है अपने को कुछ ज्यादा ही
आधुनिकता मे घोल लिया है

हमारे समाज के गौरव और इतिहास को बनाये रखने के लिये युवा शक्ती को
बीङा उठाना होगा । इसमे किसीके कहने की या आज्ञा माँगने की जरुरत नहीँ है
क्योकी ये हमारा खुद का कर्तव्य है और हम इसके निर्वाहन से भाग नही सकते ।
ये हिन्दुस्तान अनगिनत वीरो के बलिदान की नीँव पे खङा है और उस बलिदान
मे क्षत्रोयोँ के योगदान को कोइ झुठला नही सकता ।
क्योकी ये सिलसिला मुगलो तुर्को ओर अँग्रैजो के समय से चला आ रहा है ।
और इस समाज ने वर्षो तक शाषन भी किया है ।

आज हमे फिर से हमारे समाज को एक करने के लिये आवाज उठाने की जरुरत है
तभी हमारा और हमारे हिन्दुस्तान का विश्व गुरु बनने का सपना साकार होगा ।
अगर हम अब भी नही चेते तो फिर उठना मुश्किल होगा।
अब हम मे से ही महाराणा प्रताप ,शिवाजी और दुर्गादास बनना होगा।
पहले हमे देश द्रोहियो मुगलो तुर्को और अँग्रैजो से लङना पङा था।
और आज हमारे सबसे बङे दुश्मन है नशाखोरी ,कूप्रथायेँ,
समाज कँटक अपने ही लोग और कुछ शाषकीय व्यवस्थायेँ जैसे
आरक्षण का जातीआधारित होना आदी ।
इनसे लङना हमारा कर्तव्य है और हर एक क्षत्रिय को ये सँकल्प लेना है
की हम देश हित मे और समाज के लिये समर्पित हो के काम करेँ।
हम जातीवाद के समर्थक नही है
पर सामाजिक मान मर्यादाओँ का सम्मान करने वाले है।

""एसे ही कोई क्षत्रिय नहीँ बनता
क्षत्रत्व आता है खानदान और सँस्कारो से ।
क्षत्रिय रत्न वो है जो तराशा जाता है
तलवारो की धारो से ।""

[ये विचार मात्र अपने समाज को जागृत करने के लिये है और अपने समाज की गलत धारणाओ को हटाने के लिये है कोई इसे अन्यथा ना ले हमारे समाज के बारे मे सोचना हमारा हक है ]
विचार -हरिनारायण सिह राठौङ

Saturday, October 12, 2013

तब खोया गौरव फिर से हम पायेंगे


हम भूल गये हल्दीघाटी के

उस युद्ध घमासान को।

हम भूल गये पन्ना धाय के
उस महान बलिदान को।



राणा साँगा ने तुर्को के 
अभिमान को तोड़ा  था।
पृथ्वीराज ने अँधेपन में भी 
गौरी का माथा फोड़ा था।

हम भूल गये राजपूताना की

गौरवशाली गाथा को।

वीर दुर्गादास, हाड़ी रानी, जेता,

कुँपा, जयमल और पत्ता को।

राम, कृष्ण और भरत ने 
क्षत्रिय कुल में जन्म लिया।
कौरव, कंस और रावण जैसों को

इस धरा से खत्म किया।

हनुमान को जाम्बवंत ने
जब भूला बल याद दिलाया था।

लाँघ गये सौ योजन सागर को तब

माँ सीता का पता लगाया था।

क्षत्रियोँ को मिटाने का  
दुष्टों भरकस जतन किया।
पर जब उठी क्षत्रिय की तलवार 
शत्रु को जड़ से खतम किया॥

अब हमको भी गौरव अपना 
फिर से याद करना होगा।
आपस में अब तक खूब लड़े  
अब और लड़ना होगा।

धर्म, नीति और सँस्कार

जिस दिन याद हमें आ जाएंगे।

सच कहता हूँ हम अपना

खोया गौरव फिर से हम पाएंगे।


लेखक: हरिनारायण सिँह राठौङ

Wednesday, July 17, 2013

वीरांगना चमेली बावी: एक अविस्मरणीय समर गाथा

रात बहुत हो चुकी थी लेकिन अन्नमदेव अभी सोये नहीं थे। उनकी आँखों के आगे रह रह कर उस वीरांगना की छवि उभर रही थी जिसनें आज के युद्ध का स्वयं नेतृत्व किया। नीले रंग का उत्तरीयांचल पहने हुए वह वीरांगना शरीर पर सभी युद्ध-आभूषण कसे हुए थी जिसमें भारी भरकम कवच एवं वह लौह मुकुट भी सम्मिलित था जिसमें शत्रु के तलवारों के प्रहार से बचने के लिये लोहे की ही अनेकों कडिया कंधे तक झूल रही थीं। वीरांगना नें अपने केश खुले छोड दिये थे तथा उसकी प्रत्येक हुंकार दर्शा रही थी जैसे साक्षात महाकाली ही युद्ध के मैदान में आज उपस्थित हुई हैं। अन्नमदेव हतप्रभ थे; वे तो आज ही अपनी विजय तय मान कर चल रहे थे फिर यह कैसा सुन्दर व्यवधान? उन्हें बताया गया था कि यह राजकन्या चमेली बावी है जो नाग राजा हरीश्चंद देव की पुत्री है। अन्नमदेव पुन: उस दृश्य को आँखों के आगे सजीव करने लगे जब युद्धक्षेत्र में राजकुमारी चमेली बावी अपनी दो अन्य सहयोगिनियों झालरमती नायकीन तथा घोघिया नायिका के साथ काकतीय सेना पर टूट पडी थीं। इतना सुव्यवस्थित युद्ध संचालन कि अपनी विजय को तय मान चुकी सेना घंटे भर के संघर्ष में ही तितर-बितर हो गयी और स्वयं अन्नमदेव पराजित तथा सैनिक सहायता के लिये प्रतीक्षारत तम्बू में ठहरे हुए यह प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कब बारसूर और किलेपाल से उनके सरदार अपनी अपनी सैन्य टुकडियों के साथ पहुँचे और पुन: एक जबरदस्त हमला चक्रकोटय के अंतिम नाग दुर्ग पर किया जा सके।

अगले दिन की सुबह का समय और विचित्र स्थिति थी। आक्रांता सेना अपने तम्बुओं में सिमटी हुई थी जबकि वीरांगना चमेली बावी अपने शस्त्र चमकाते हुए अपनी सेना के साथ आर या पार के संघर्ष के लिये आतुर दिख रही थी। वह अन्नमदेव जिसने अब तक गोदावरी से महानदी तक का अधिकांश भाग जीत लिया था एक वृक्ष की आड से मंत्रमुग्ध इस राजकन्या को देख रहा था। चक्रकोट्य में आश्चर्य की स्थिति निर्मित हो गयी चूंकि इस तरह काकतीय पलायन कर जायेगे सोचा नहीं जा सकता था। तभी एक घुडसवार सफेद ध्वज बुलंद किये तेजी से आता दिखाई दिया। उसे किले के मुख्यद्वार पर ही रोक लिया गया। यह दूत था जो कि अन्नमदेव के एक पत्र के साथ राजा हरिश्चन्द देव से मिलना चाहता था। राजा घायल थे अत: दूत को उनके विश्रामकक्ष में ही उपस्थित किया गया। चूंकि सेना का नेतृत्व स्वयं चमेली बावी कर रही थी अत: वे भी अपनी सहायिकाओं के साथ महल के भीतर आ गयी।

बाहर अन्नमदेव के दिन की धड़कने बढी हुई थीं। वे प्रेम-पाश में बँध गये थे। सारी रात हाँथ में तलवार चमकाती हुई चमेली बावी का वह आक्रामक-मोहक स्वरूप सामने आता रहा और वे बेचैन हो उठते। यह युवति ही उनकी नायिका होने के योग्य है....। केवल रूप ही क्यों वीरता एसी अप्रतिम कि जिस ओर तलवार लिये उनका अश्व बढ जाता मानो रक्त की होली खेली जा रही होती। राजकुमारी चमेली नें कई बार अन्नमदेव की ओर बढने का प्रयास भी किया था किंतु काकतीय सरदारों नें इसे विफल बना दिया। तथापि एक अवसर पर वे अन्नमदेव के अत्यधिक निकट पहुँच गयी थी। अन्नमदेव नें तलवार का वार रोकते हुए वीरांगना की आँखों में प्रसंशा भाव से क्या देखा कि बस उसी के हो कर रह गये। काजल लगी हुई जो बडी-बडी आखें आग्नेय हो गयी थीं वे अब बहुत देर तक अपलक ही रह गये अन्नमदेव की आखों का स्वप्न बन गयी थी।

महाराज! दूत आने की आज्ञा चाहता है।द्वारपाल नें तेलुगू में तेज स्वर से उद्घोषणा की। अन्नमदेव के शिविर से दूत को भीतर भेजने का ध्वनि संकेत दिया गया। अन्नमदेव आश्वस्त थे कि वे जो चाहते हैं वही होगा। हरिश्चंददेव के अधिकार मे केवल गढिया, धाराउर, करेकोट और गढचन्देला के इलाके ही रह गये थे; यह अवश्य था कि भ्रामरकोट मण्डल के जिनमें मरदापाल, मंधोता, राजपुर, मांदला, मुण्डागढ, बोदरापाल, केशरपाल, कोटगढ, राजगढ, भेजरीपदर आदि क्षेत्र सम्मिलित हैं; से कई पराजित नाग सरदार अपनी शेष सन्य क्षमताओं के साथ हरीश्चंद देव से मिल गये थे तथापि अब बराबरी की क्षमताओं का युद्ध नहीं रह गया था।

क्यों मौन हो पत्रवाहक?” अन्नमदेव नें बेचैनी से कहा। वे अपने मन का उत्तर सुनना चाहते थे आखिर प्रस्ताव ही मनमोहक बना कर भेजा गया था। हरिश्चंददेव से संधि की आकांक्षा के साथ अन्नमदेव नें कहलवाया था कि बस्तर राज्य की सीमा चक्रकोट से पहले ही समाप्त हो जायेगी तथा आपको काकतीय शासकों की ओर से हमेशा अभय प्राप्त होगा। चक्रकोट पर हुए किसी भी आक्रमण की स्थिति में भी आपको बस्तर राज्य से सहायता प्रदान की जायेगी.....राजा हरिश्चंददेव के साथ संधि की केवल एक शर्त है कि वे अपनी पुत्री राजकुमारी चमेली बावी का विवाह हमारे साथ करने के लिये सहमत हो जायें

क्या कहा राजा हरिश्चंद नें?” अन्नमदेव नें इस बार स्वर को उँचा कर बेचैन होते हुए पूछा।
जी राजा नें कहा कि अपनी बेटी के बदले उन्हें किसी राज्य की या जीवन की कामना नहीं है। पत्रवाहक नें दबे स्वर में कहा।

और कोई विशेष बात?” अन्नमदेव आवाक थे।

जी राजकुमारी नें अभद्रता का व्यवहार किया।

क्या कहा उन्होंने?”

“.....उन्होंने कहा कि स्त्री को संधि की वस्तु समझने वाले अन्नमदेव का विवाह प्रस्ताव मैं ठुकराती हूँ

ओहअन्नमदेव के केवल इतना ही कहा और मौन हो गये। यह तो एक कपोत का बाज को ललकारने भरा स्वर था; नागराजा का इतना दुस्साहस कि जली हुई रस्सी के बल पर अकड रहा है? “....और यह राजकुमारी स्वयं को आखिर क्या समझती हैं? अब आक्रमण होगा। विजय के चिन्ह स्वरूप बलात हरण किया जायेगा और मैं उस मृगनयनी-खड़्गधारिणी से विवाह करूंगा। अन्नमदेव की भँवे तनने लगीं थी।

सुबह होते ही युद्ध की दुंदुभि बजने लगी। दोनों ओर की सेनायें सुसजित खडी थीं। हरिश्चंददेव घायल होने के बाद भी अपने हाथी पर बैठ कर धनुष थामे अपने साथियों सैनिको का उत्साह बढा रहे थे। चमेली बावी नें सीधे उस सैन्यदल पर धावा बोलने का निश्चिय किया था किस ओर आक्रांता अन्नमदेव होंगे। यद्यपि आक्रांताओं नें भी भीषण तैयारी कर रखी थी। हरिश्चंद देव की कुल सैन्य क्षमता से कई गुना अधिक सैनिकों नें बारसूर, किलापाल और करंजकोट की ओर से चक्रकोट्य को चेर लिया था। भीषण संग्राम हुआ; नाग आहूतियाँ देते रहे और अन्नमदेव बेचैनी के साथ युद्ध के परिणाम तक पहुँचने की प्रतीक्षा करता रहा। आज कई बार आमने सामने के युद्ध में चमेली बावी नें उसे अपने तलवार चालन कौशल का परिचय दिया था। एसी प्रत्येक घटना अन्नमदेव के भीतर राजकुमारी चमेली के प्रति उसकी आसक्ति को बलवति करती जा रही थी। नहीं; अब युद्ध अधिक नहीं खीचा जाना चाहिये....अन्नमदेव अचूक धनुर्धर थे। धनुष मँगवाया गया तथा अब उन्होंने हरिश्चंददेव को निशाना बनाना आरंभ कर दिया। वाणों के आदान-प्रदान का दौर कुछ देर चला। तभी एक प्राणघातक वाण हरिश्चंद देव की छाती में आ धँसा। अन्नमदेव नें अब कि उस महावत को भी निशाना बनाया जो हरिश्चंद देव का हाथी युद्ध भूमि से लौटाने की कोशिश कर रहा था। नाग सेनाओं में हताशा और भगदड मच गयी। राजकुमारी नें स्थिति का अवलोकन किया और उन्हें पीछे हट कर नयी रणनीति बनाने के लिये बाध्य होना पड़ा। आनन फानन में राजकुमारी चमेली का तिलक कर उन्हें चक्रकोटय जी शासिका घोषित कर दिया गया यद्यपि इस समय केवल गिनती के सैनिक ही जयघोष करने के लिये शेष रह गये थे। बाहर युद्ध जारी था तथा अनेको वीर नाग सरदार अपनी नयी रानी तक अन्नमदेव की पहुँच को असंभव किये हुए थे। अपनी मनोकामना की पूर्ति में इस विलम्ब से कुपित अन्नमदेव नाग नें नाग सरदारो के पीछे अपने सैनिकों के कई कई जत्थे छोड़ दिये। भगदड मच गयी और अनेक सरदार व नाग सैनिक अबूझमाड़ की ओर खदेड दिये गये।

अब अन्नमदेव की विजयश्री का क्षण था। पत्थर निर्मित किले की पहले ही ढहा दी गयी दीवार से भीतर वे सज-धज कर तथा हाथी में बैठ कर प्रविष्ठ हुए। चारो ओर सन्नाटा पसरा हुआ था। नगरवासी मौन आँखों से अपने नये शासक को देख रहे थे। सैनिक तेजी से आगे बढते हुए एक एक भवन और प्रतिष्ठान पर कब्जा करते जा रहे थे। राजकुमारी को गिरफ्तार कर प्रस्तुत करने के लिये एक दल को आगे भेजा गया था। अन्नमदेव चाहते थे कि राजकन्या का दर्पदमन किया जाये और तब वे उसके साथ सबके सम्मुख इसी समय विवाह करें।

क्या हुआ सामंत शाह, लौट आये?...कहाँ हैं राजकुमारी चमेली?”

“.....”

सबको साँप क्यों सूंघ गया है?क्या हुआ?” अन्नमदेव नें अपने सरदार सामंत शाह और उसके साथी सैनिकों के चेहरे के मनोभावों को पढने की कोशिश करते हुए कहा। 

“...जौहर राजा साहब। राजकुमारी अपनी दोनो मुख्य सहेलियों झालरमती और घोगिया के साथ मेरे सामने ही आग में कूद पडी और अपने प्राण दे दिये

तो तुमने बचाने की कोशिश नहीं की.....।बेचैनी में शब्दों नें अन्नमदेव का साथ छोड दिया था।

“...राजकुमारी आग में प्रवेश करने से पहले शांत थी, वे मुस्कुरा रही थीं। उन्होंने मुझे सम्बोधित किया और कहा कि मैं जा कर अपने राजा से कह दूं कि आक्रमणकारी बल से किसी की जमीन तो हथिया सकते हैं लेकिन मन और प्रेम हथियारों से हासिल नहीं होते....।

हाथी अब उस ओर मोड दिया गया जिस ओर से धुँआ उठ रहा था। राजा की नम आँखे कोई नहीं देख सका। एसी पराजय की कल्पना भी अन्नमदेव ने नहीं की थी।

साभार  -   http://rajputworld.blogspot.in/2013/07/blog-post_4696.html
http://rajeevnhpc.blogspot.in/2013/04/blog-post_2592.html#links

Thursday, April 4, 2013

''राजपूती- चोला''




समय के साथ -साथ जमाना बदल जाता है,
''खानपान'' और ''रहन-सहन'' पुराना बदल जाता है,
वक़्त की रफ़्तार में शख्स रंग बदल जाता है,
मत बदलो ''राजपूती-चोला'', जीने का ढंग बदल जाता है,,

''राजपूती-चोला'' पहन कर गर्व महसूस होता है,
अपने सर पर वीर पूर्वजों का असर महसूस होता है.
साफा बंधकर जब चलते हैं वीर राजपूत,
उनको  अपने बाने पर फकर महसूस होता है,,

ज़माने के साथ बदलना, नहीं कोई गलत बात,
लेकिन उन चीजों को न छोड़ो जो हैं हमारे पूर्वजों की सौगात,,
इस बात पर करना सभी गहन सोच-विचार,
हमारा आचरण,आवरण उचित हो और अच्छा रहे व्यवहार,,

अपने रीति रिवाजों को बिलकुल मत भुलाना,
रूढ़ियाँ हैं तोडनी पर अच्छे विचारों को है अपनाना,,
हमारे ये रीति रिवाज सितारों की तरह हैं दमकते ,
इसीलिए तो राजपूत सबसे अलग है चमकते,

हम ऐरे गैरे नहीं, ''राजपूत'' हैं, इसका रखो ध्यान,
''अमित'' अपने शानदार ''राजपूती-चोले'' का हमेशा करो सम्मान,,

----------मधु -- अमित सिंह

Wednesday, April 3, 2013

कीर्ति राणा को मिला पत्रकारिता के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड


इंदौर, मध्य प्रदेश: इंदौर प्रेस क्लब द्वारा आयोजित सार्क देशों के भाषाई पत्रकारिता सम्मलेन में इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार-भोपाल दबंग दुनिया के सम्पादक कीर्ति राणा को उनकी दीर्घ पत्रकारिता के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि मप्र के गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता सहित अन्य अतिथियों से स्मृति चिन्ह गृहण करते श्री राणा और श्रीमती राज कुमारी राणा। उल्लेखनीय है, कि श्री राणा दैनिक भास्कर में अट्ठाईस वर्षों की सेवा के दौरान इंदौर में चीफ रिपोर्टर के साथ ही उज्जैन ब्यूरो चीफ, राजस्थान के उदयपुर और श्रीगंगानगर त्तथा हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में सम्पादक रह चुके है। २०११ में इंदौर से शुरू हुए दैनिक दबंग दुनिया से जुड़े और नवम्बर १२ से भोपाल में दबंग दुमिया को स्थापित करने में जुटे हैं। सकारात्मक सोच और जीवन मूल्यों से जुडा स्तम्भ "पचमेल" वर्षों से लिख रहे हैं, इसके साथ ही सिटी रिपोर्टिंग आधारित पुस्तक प्रकाशन को तैयार है। इसके साथ ही काव्य संग्रह भी शीघ्र प्रकाशित होना है। 

क्षत्रिय एकता मंच की ओर से कीर्ति राणा जी को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ।


Saturday, January 19, 2013

महाराणा प्रताप जी की पुण्य तिथि पर उन्हें सादर नमन

आज भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी महान वीर महाराणा प्रताप जी की पुण्य तिथि पर आइए मिलकर उन्हें नमन करें...



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