शोभना सम्मान-2012

Tuesday, December 25, 2012

संस्कार और सभ्यता के दायरे में आज़ादी

    मुझे लगता है की कोई फायदा नही निरर्थक बहस का....बात अगर हम अपने समाज की करें ,,,वहां लड़कियों को सँभालने और एक करने की करें तो ज्यादा अच्छा हो
हम संस्कार बाँटने की बाते तो बहुत करते हैं संस्कार केवल कपड़ो के पहनने से नहीं ,,,विचारों को अपने व्यवहार में डालने से आयेंगे,,,कोई भी माता-पिता नही चाहते कि उसके बच्चे अच्छे न बने या उनका नाम रोशन न करें,,,,हर एक की यही इच्छा होती है ,,लेकिन आज की आधुनिकता हमारे बच्चों पर हावी हो जाती है ,,,,परिणाम......सामने ....
मैं लड़कियों की स्वतंत्रता की बात को मानती हूँ,,,आजादी होनी चाहिए लेकिन दायरे में ...आज जिस तरीके से आजादी को गलत ढंग से नई युवा पीढ़ी ले रही है ,,उसके परिणाम अच्छे नही हैं न ही आगे होंगे....विचारों को आगे लाओ ,,देश की प्रगति में भागेदारी निभाओ...यह नही की रात को बीच सड़क पर शराब के नशे में पड़े रहो....यह न तो हमारी सभ्यता को शोभा देता है न हमारे संस्कारों को....
क्यों भूल रहे हो की हम राजपूत तो अपनी बहनों ,,बेटियों की आबरू के लिए अपने प्राण तक दे देते थे...उनकी रक्षा करना हमारा परम धर्म होता था,,,शोभा है लड़कियाँ हमारे घर की ,,तो उन्हें शोभा ही बनाये रखो ,,बेवजह उनका मजाक मत बनाओ.....
जहाँ तक लड़कियों की आज़ादी की बात है उन्हें आज़ादी मिलनी चाहिए अपने जीवन के फैसले लेने की लेकिन सहमती के साथ....आज हमारे समाज में जरूरत है लड़कियों को मजबूत और अपने पैरों पर खड़े होने की...सामाजिक हालातों से शिक्षा ले क़ि कैसे हम इन हालातों में अपने आपको सुरक्षित रख,,,आगे बढ़ सकते हैं,,,,
मैं समझती हूँ क़ि जब घर क़ि बेटियां और माँ मजबूत हो ,,,तो उस घर और समाज को कोई बाधा नही आ सकती....तरक्की के रास्ते खुलते चले जायेंगे...


द्वारा - सुश्री शिखा सिंह 

Monday, December 10, 2012

महाराजा भोज की गाथा



     ब सृष्टि नहीं थीधरती नहीं थीजीवन नहीं थाप्रकाश नहीं था,न जल थान थल तब भी एक ओज व्याप्त था | इसी ओज से सृष्टि ने आकर लिया और यही प्राणियों के सृजन का सूत्र है समस्त भारत के ओज और गौरव का प्रतिबिम्ब हैं राजा भोज |  ये महानायक भारत कि संस्कृति में,साहित्य में,लोक-जीवन में,भाषा में और जीवन के प्रत्येक अंग और रंग में विद्यमान हैं ये वास्तुविद्या और भोजपुरी भाषा और संस्कृति के जनक  हैं
लोक-मानस में लोकप्रिय भोज से भोजदेव बने जन-नायक राजा भोज का क्रुतित्व,अतुल्य वैभव है | 965 ईसवी में मालवा प्रदेश कि ऐतिहासिक नगरी उज्जैनी में परमार वंश के राजा मुंज के अनुज सिन्धुराज के घर इनका जन्म हुआ

वररूचि ने घोषणा कि यह बालक 55 वर्ष माह गौड़-बंगाल सहित दक्षिण देश तक राज करेगा | पूर्व में महाराजा विक्रमादित्य के शौर्य और पराक्रम से समृद्ध उज्जैन नगरी में पांच वर्ष की आयु से भोज का विद्या अध्ययन आरम्भ हुआ इसी पावस धरती पर कृष्णबलराम और सुदामा ने भी शिक्षा पायी थी
बालक भोज के मेधावी प्रताप से गुरुकुल दमकने लगा | भोज कि अद्भुत प्रतिभा को देख गुरुजन विस्मित थे | मात्र आठ वर्ष कि आयु में एक विलक्षण बालक ने समस्त विद्या,कला और आयुर्विज्ञान का ज्ञान प्राप्त कर लिया | भोज कि तेजस्विता को द्देख राजा मुंज का ह्रदय काँप उठा | सत्ता कि लालसा में वाग्पति मुंज भ्रमित हो गए और उन्होंने भोज कि हत्या का आदेश दे दिया भला भविष्य के सत्य को खड़ा होने से कौन रोक सकता है

काल कि प्रेरणा से मंत्री वत्सराज और चंडाल ने बालक भोज को बचा कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया | महाराज मुंज के दरबार में भोज का कृत्रिम शीश और लिखा पत्र प्रस्तुत किया गया | पत्र पढ़ते ही मुंज का ह्रदय जागा, वे स्वयं को धिक्कारने लगे,पुत्र-घात  की ग्लानी में आत्मघात करने को आतुर हो उठे तभी क्षमा-याचना के साथ मंत्री वत्सराज ने भोज के जीवित होने कि सूचना दी | अपने चाचा कि विचलित अवस्था देख भोज उनके गले लग गए | महाराज मुंज ने अपने योग्य राजकुमार को युवराज घोषित कर दिया | इसी जयघोष के बीच महाराज मुंज ने कर्णत के राजा तिलक के साथ युद्ध कि योजना बनायी और युद्ध अभियान पर चल दिए | 999 ईसवी में परमार वंश के इतिहास ने कर्वट ली महाराज मुंज युवराज कि घोषणा करके गए तो वापस नहीं आये | गोदावरी नदी को पार करने का परिणाम घातक रहा,महाराज मुंज को जान गवानी पड़ी युवराज भोज महाराजाधिराज बन गए मगर अभी वे राजपाठ सँभालने को तैयार नहीं थे
भोज ने अपने पिता सिन्धुराज को समस्त राजकीय-अधिकार सौंप दिए और वाग्देवी कि साधना में तल्लीन हो गए | पिता सिन्धुराजगुजरात के चालुक्यों से युद्ध के लिए चल दिए और भोज के रचना-कर्म ने आकर लेना शुरू किया | भोजराज ने काव्य,चम्पू,कथा,कोष,व्याकरण,निति,काव्य-शास्त्र,धर्म-शास्त्र,वास्तु- शास्त्र,ज्योतिष,आयुर्वेद,श्व-शास्त्र,पशु-विज्ञानतंत्र,दर्शन,पूजा-पद्धति,यंत्र-विज्ञानं पर अद्भुत ग्रन्थ लिखे | मात्र एक रात में चम्पू-रामायण की रचना कर समस्त विद्वानों को चकित कर दिया,तभी परमार वंश पर एक और संकट आ गया, महाराज सिन्धुराज रण-भूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए
शूरवीर भोजराज ने शस्त्र उठा लियायुद्ध-अभियान छेड़ा,चालुक्यों को पीछे हटायाकोंकण को जीता | कोंकण विजय-पर्व के बाद भोजराज का राज्याभिषेक हुआ | यह इतिहास का दोहराव था क्योंकि ठीक इसी तरह अवंतिका के सम्राट अशोक का राज्याभिषेक भी अनेक विजय अभियानों के बाद ही हुआ था राज्याभिषेक के दिन महाकाल के वंदन और प्रजा के अभिनन्दन से उज्जैन नगरी गूंज उठी | विश्व-विख्यात विद्वान महाराज भोज की पटरानी बनाने का सौभाग्य महारानी लीलावती को,लेकिन महाराज का अधिकाँश समय रण-भूमि में ही बिता | विजय अभियानों के वीरोचित-कर्मों के साथ विद्यानुरागी राजा भोज ने अपने साहित्य-कला-संस्कारों को भी समृद्ध किया | उनकी सभा पंद्रह कलाओं से परिपूर्ण थी | राज्य में कालीदास,पुरंदर,धनपालधनिकचित्त्पदामोदरहलायुद्धअमित्गतिशोभनसागरनंदी, लक्ष्मीधरभट्टश्रीचन्द्र, नेमिचंद्रनैनंदीसीताविजया,रोढ़ सहित देश भर के पांच सौ विद्वान रचनाकर्म को आकर दे रहे थे| 
स्रोत: फेसबुक से साभार 


Friday, December 7, 2012

राजपूत एकता


जय माता जी की 

क्या हम राजपूत हैं.......
आज हम राजपूतो की हालत क्या हो गयी है इस  विषय पर चिन्तन की सख्त जरूरत है. आज हम अपनी ठकुराईस के चलते बुरे हालातो में पहुँच चुके हैं हमारी शिक्षा ,हमारा रहन सहन ,खान पान और हमारी शान न जाने कहाँ धूमिल हो गयी है. सोचिये इसके जिम्मेदार कौन हैं.....? 
क्या इस स्थिति के लिए हम स्वयं जिम्मेदार नही हैं हमारी एकता न होना और बेवजह की झूठी शान के कारण आज हम इस हालत में हैं की न जाने कितने राजपूत अपनी जमीने खो बैठे हैं यहाँ तक कि खाने के लिए दो वक़्त की  रोटी के भी लाले पड़ गये हैं.....
फिर भी आज हम अपने समाज ,अपने आने वाली पीढ़ी के बारे में सोचना नही चाहते. जिन महान वीरो का हम गुणगान करते नही थकते उनकी एक बात का भी हमने ख्याल नही रखा या सदा के लिए दुर्भाग्य से नाता जोड़ लिया है.
आज जैसे हम अपने पूर्वजो का गुणगान करते हैं, आगे आने वाली हमारी नस्ल क्या हमें ऐसे ही याद करेगी नही कभी नही ...अब भी वक़्त है जागो...उठो...और एक हो फिर से परचम लहरा दो अपना ,,,,दिखा दो सबको कि इस देश पर राज़ करने के असली हक़दार हम ही हैं. आज वक़्त आ गया है कि हम अपने आप को मजबूत कर एक हो आगे बढे.
मैं  समझती हूँ कि हमारे बिखराव के कारण ही आज हमारे ये हालात हैं जैसे मुस्लिमों  में फतवा जारी कर दिया जाता है काश वैसे ही हमारे समाज में भी किसी ने राजपूतो के लिए किया होता तो कोई ऐसा नेत्रत्व  हमारा भी होता जो पत्थर की  लकीर समझा जाता.....काश ऐसा होता.....
ये दर्द हर राजपूत के दिल में है लेकिन आगे नही बढ़ना चाहते ...एक नही होना चाहते ...
कहावत है .....जो बछड़ा दूध पीने को खड़ा नही हुआ 
उससे हल में चलने कि उम्मीद क्या करना 
अगर आज भी आप नही उठे और पूरे समाज को साथ नही जोड़ा तो तरक्की कि बाते तो दूर हमारे हालत बाद से बदतर हो जायेंगे .......जय जय श्री राम....

द्वारा - सुश्री शिखा सिंह 


Thursday, December 6, 2012

अंग्रेज़ सेनाशाही क्षत्रिय समाज के पाँव उखाड़ने में यत्नशील हो गयी


   ए. ओ. ह्यूम सन् 1882 में जब सरकारी सेवा से मुक्त हुए तो अपने सेवा-काल में प्राप्त अनुभवों पर विचार करने लगे। उनका जीवन चरित्र लिखने वाले सर विलियम वडरबर्न उनके अनुभवों के
 विषय में इस प्रकार लिखते हैं—

‘सेवा-मुक्त होने से कुछ पहले ह्यूम के पास ऐसे प्रमाण एकत्रित हो गये थे कि जिनसे उसे विश्वास हो गया कि हिन्दुस्तान में एक गम्भीर, स्थिति उत्पन्न हो चुकी है, जिसका अति भयंकर परिणाम निकल सकता था महान् भय के प्रमाण जो उसे मिले, वह सात वृहत्ख ण्डों में रखे गये थे। उन प्रमाणों में लगभग तीस सहस्र सूचनाएँ सम्मिलित हैं।

इन सात खण्डों में साधु-सन्त, महात्माओं क्षत्रिय राजाऔ और उनके कर्मचारियों के लिखे पत्र हैं, जो देश के धार्मिक एवं रातनेतिक नेता थे।उनका अविश्वास नहीं किया जा सकता था।इन प्रमाणों की उपस्थिति में सर वडरबर्न लिखते हैं—
Hume felt that a safety valve must be provided for the suppressed discontentment of the masses and something must be done to relive their despair, if a disaster was to be averted………
(ह्यूम यह अनुभव करता था कि जनता में दबे हुए असन्तोष को निकलने का स्थान होना चाहिए। उनकी निराशा को दूर करने का कुछ यत्न करना चाहिए, जिससे भारतीयों का भयंकर विद्रोह और दुर्घटना होने से रोकी जा सके।)

सर ह्यूम सरकारी नौकरी में सन् 1849 में आये थे और सन् 1882 में सेवा-मुक्त हुए थे। वे हिन्दुस्तान के उस ऐतिहासिक काल में भारत सरकार में रहे थे, जिसमें सन् 1857 का अंग्रेज़ी राज्य के विरुद्ध भयंकर विद्रोह हुआ था और उस विद्रोह के उपरान्त अंग्रेज़ सेनाशाही ने उस विद्रोह में समलित क्षत्रिय राजा और जनता से भीषण प्रतिशोध लिया था। उस काल के अनुभव ही ह्यूम के मस्तिष्क पर बोझा बने हुए प्रतीत होते हैं। परन्तु जो कुछ ह्यूम को अपने सेवा-काल में विदित हुआ था, वही कुछ मैकॉले और उसके समान विचार वाले अंग्रेज़ विद्वानों को पहले ही अनुभव हो चुका था। उन्होंने भी भारत के प्रशान्त सागर की तह के नीचे गहराई में एक प्रबल धारा बहती देखी थी और उन्होंने इस धारा को दबा देने का प्रयत्न अपने ढंग से किया था।

इस प्रतिशोध के स्वरूप की दिशा बदलने की कोशिस दो प्रकार से की गई एक ओर राजा राममोहन राय की ब्रह्म-समाज के रूप में, तथा दूसरी ओर मैकॉले साहब की सरकारी शिक्षा के रूप में। इसी विरोध का एक अन्य रूप उत्पन्न हुआ, सर ह्यूम द्वारा स्थापित इण्डियन नैशनल कांग्रेस। क्षत्रिय समाज की गहराई में चल रही इस धारा को अंग्रेज़ विद्वानों ने देखा और समझा था। वह धारा थी भारतीय संस्कृति और धर्म की, जिसे लम्बा मुसलमानी राज्य भी मिटा नहीं सका था।

अंग्रेज़ी शासन के बंगाल में स्थापित होते ही, अंग्रेज़ विद्वान अधिकारियों को यह जानने की चिन्ता सताने लगी थी कि जो कुछ इस्लामी राज्य मोराकों से अफ़गानिस्तान तक कुछ ही वर्षों में सम्पन्न कर सका था, वह हिन्दुस्तान में अपने सात सौ वर्ष के राज्य-काल में क्यों नहीं कर सका ? उनकी खोज का यह परिणाम निकला कि यह भारत की प्राचीन संस्कृति और धर्म की धारा थी, जिसे क्षत्रिय थामे हुए थे जो इस्लाम के यहाँ असफल होने में कारण बनी। इसको विनष्ट करने में ही अंग्रेज़ सरकार को अपनी भलाई दिखाई देने लगी थी।

यह ठीक है कि राजा राममोहन राय के विचार पूर्वोक्त अंग्रेज़ों के कहने से नहीं बने थे। वे उनके अपने बाल्यकाल में मुसलमानों से सम्पर्क के कारण बने थे। साथ ही ये विचार बने थे ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’ के सेवा-काल में उनके एक योग्य अंग्रेज़ अधिकारी की संगत से। राजा साहब ने उपनिषदादि ग्रंथों का अपने विशेष दृष्टिकोण से अध्ययन भी किया था, परन्तु जब उनके विचार ब्रह्म-समाज में मूर्त होने लगे तो

अंग्रेज़ी सरकार को राजा राममोहन राय अपनी योजना के अनुकूल प्रतीत हुए। उन्हें वे उस तरंग की सहायता करते प्रतीत हुए, जिससे सरकार भारतीय सांस्कृतिक धारा का विरोध करना चाहती थी। अतः सरकार इसमें सहायक होने लगी। ब्रह्म-समाज की स्थापना सन् 1828 में हुई थी। ब्रह्म-समाज का स्वतंत्रता के लिए अत्यन्त प्रेम होने पर भी उन्होंने ब्रिटिश राज्य के विरुद्ध विद्रोह का झण्डा ऊँचा नहीं किया।)

अंग्रेज़ नीतिज्ञों को कुछ ऐसा प्रतीत हुआ कि यह ब्रह्म-समाज भी उस गहराई में चलने वाली धारा का एक प्रकार से विरोध ही कर रही है। अतः ब्रह्म-समाज को उनका समर्थन और सहायता प्रस्तुत हो गई और सन् 1828 से लेकर, हिन्दुस्तान में ब्रिटिश राज्य के अन्त काल तक, यह उनको प्राप्त रही। इसी प्रकार की मैकॉले की सरकारी शिक्षा की योजना थी। मैकॉले ने एक समय अपने पिता को एक पत्र में लिखा था—

The effect of this education on the Hindoos is prodigious. No Hindoo, who has received our English education, ever remains sincerely attached to his religion.

(इस शिक्षा का हिन्दुओं पर प्रभाव आश्चर्यजनक होगा। कोई भी हिन्दू, जिसने यह अंग्रेज़ी शिक्षा प्राप्त कर ली है, कभी भी निष्ठापूर्वक अपने धर्म से सम्बद्ध नहीं रह सकता।)

ब्रह्म-समाज 1828 में स्थापित हुई। अंग्रेज़ी सरकारी शिक्षा 1835 में आरंभ हुई और ह्यूम साहब की इण्डियन नैशनल कांग्रेस सन् 1885 में स्थापित की गई। तीनों तरंगे जान-बूझ कर अथवा अनजाने में हिन्दू-समाज की आभ्यान्तरिक सांस्कृतिक धारा को नाश करने में संलग्न रहीं। जितना-जितना इनका बल बढ़ता गया, सांस्कृतिक धारा का विरोध, ये उतने ही बल से करती रहीं। वहीं एक ओर बाहरी यूरोपीय बुद्धिवाद ने, और दूसरी ओर ईसाईयत ने,जो देश में विदेशीय साम्राज्यवाद के साथ आया था और यहाँ की समाज में फूट डलवा रहा था, भारतीय परिवार पर आक्रमण कर, यहाँ के मज़हब को विनष्ट कर दिया था जिसे सुधार करने वाली सस्था ब्रह्म-समाज से सर्वथा विपरीत आर्य-समाज थी। यह संघर्षमयी संस्था थी। हिन्दुओं के भीतर इसका स्थान वही था, जो प्रोटैस्टैण्ट समुदाय को रोमन कैथॉलिक के प्रति था। यह पुनरुद्धार करने वाला आन्दोलन था। यह पुनः प्राचीन वैदिक मत को, इसकी सभ्यता और रीति-रिवाज को चाहता था।) यही अंग्रेज़ नीतिज्ञ नहीं चाहते थे। वे नहीं चाहते थे कि विचारों के वे तत्त्व जीवित और जाग्रत रहें, जिन्होंने इस्लाम जैसे बलशाली समुदाय का मुख मोड़ दिया था। अतः पूर्ण अंग्रेज़ी सरकार, इसका विरोध करने पर उद्यत हो गई।

भारतवर्ष में क्षत्रियों के साथ विशाल हिन्दू-समाज, जिसके पाँव दृढ़ता से अपनी प्राचीन संस्कृति और धर्म में जमे थे काल की विपरीत गतियों का सफलतापूर्वक सामना करता चला आया था। भारतवर्ष पर गिद्ध-सी दृष्टि रखने वाले विदेशी ,क्षत्रिय समाज के पाँव उखाड़ने में यत्नशील हो गये। एक दूषित संयोग, इस्लाम, ईसाईयत और अंग्रेज़ी शिक्षा-प्राप्त आस्था-विहीन हिन्दुस्तानी घटकों का बन गया और इस संयोग का विरोध करने के लिए आर्य-समाज हिन्दू-समाज की कायाकल्प करने की चेष्टा करने लगी।

द्वारा - श्री भूपेंद्र सिंह चौहान 



Wednesday, December 5, 2012

राजपूत जातियों की सूची

क्रमांक नाम गोत्र वंश स्थान और जिला

1 सूर्यवंशी कश्यप् सूर्य बुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ

2 गुहिलवन्शी गहलोत बैजपायण सूर्य मथुरा कानपुर और पूर्वी जिले
3 गुहिलवन्शी सिसोदिया बैजपायन् , सूर्य महाराणा उदयपुर स्टेट
4 कछवाहा मानव्य् सूर्य महाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य
5 राठोड कश्यप, सूर्य जोधपुर बीकानेर और पूर्व और मालवा
6 सोमवंशी अत्रैय चन्द प्रतापगढ और जिला हरदोई
7 यदुवंशी अत्रैय चन्द राजकरौली राजपूताने में
8 भाटी अत्रय जादौन महारजा जैसलमेर राजपूताना
9 जडेजा अत्रय यदुवंशी महाराजा कच्छ भुज
10 जादवा अत्रय जादौन अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा
11 तन्वर व्याघ्र चन्द पाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर
12 कटियार व्याघ्र तोंवर धरमपुर का राज और हरदोई
13 पालीवार व्याघ्र तोंवर गोरखपुर
14 परिहार कौशल्य अग्नि मंडोर (जोधपुर) एवं मध्यप्रदेश
15 तखी कौशल्य परिहार पंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में
16 पंवार वशिष्ठ अग्नि मालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया
17 सोलंकी भारद्वाज अग्नि राजपूताना मालवा सोरों जिला एटा
18 चौहान वत्स अग्नि राजपूताना पूर्व और सर्वत्र
19 बिष्ट भारद्वाज अग्निवंशी, सूर्यवंशी प्राचीन में राजपूताना, यू.पी.
20 बिष्ट शान्डिल्य अग्निवंशी, सूर्यवंशी प्राचीन राजपूताना और यू.पी.
21 हाडा वत्स चौहान कोटा बूंदी और हाडौती देश
22 खींची वत्स चौहान खींचीवाडा मालवा ग्वालियर
23 भदौरिया वत्स चौहान नौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर
24 देवडा वत्स चौहान राजपूताना सिरोही राज
25 शम्भरी वत्स चौहान नीमराणा रानी का रायपुर पंजाब
26 बच्छगोत्री वत्स चौहान प्रतापगढ सुल्तानपुर
27 राजकुमार वत्स चौहान दियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला
28 पवैया वत्स चौहान ग्वालियर
29 गौर ,गौड भारद्वाज सूर्य शिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ
30 वैस भारद्वाज चन्द्र उन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में
31 गेहरवार कश्यप सूर्य माडा हरदोई उन्नाव बांदा पूर्व
32 सेंगर गौतम ब्रह्मक्षत्रिय जगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन
33 कनपुरिया भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय पूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं
34 बिसैन वत्स ब्रह्मक्षत्रिय गोरखपुर बलिया गोंडा प्रतापगढ में हैं
35 निकुम्भ वशिष्ठ सूर्य गोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर
36 सिरसेत भारद्वाज सूर्य गाजीपुर बस्ती गोरखपुर
37 च्चाराणा दहिया चन्द जालोर, सिरोही केर्, घटयालि, साचोर, गढ बावतरा,
38 कटहरिया वशिष्ठ सूर्य बरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर
39 वाच्छिल अत्रयवच्छिल चन्द्र मथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर
40 बढगूजर वशिष्ठ सूर्य अनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर
41 झाला मरीच कश्यप चन्द्र धागधरा मेवाड झालावाड कोटा
42 गौतम गौतम ब्रह्मक्षत्रिय राजा अर्गल फ़तेहपुर
43 रैकवार भारद्वाज सूर्य बहरायच सीतापुर बाराबंकी
44 करचुल हैहय कृष्णात्रेय चन्द्र बलिया फ़ैजाबाद अवध
45 चन्देल चान्द्रायन चन्द्रवंशी गिद्धौर कानपुर फ़र्रुखाबाद बुन्देलखंड पंजाब गुजरात
46 जनवार कौशल्य सोलंकी शाखा बलरामपुर अवध के जिलों में
47 बहरेलिया भारद्वाज वैस की गोद सिसोदिया रायबरेली बाराबंकी
48 दीत्तत कश्यप सूर्यवंश की शाखा उन्नाव बस्ती प्रतापगढ जौनपुर रायबरेली बांदा
49 सिलार शौनिक चन्द्र सूरत राजपूतानी
50 सिकरवार भारद्वाज बढगूजर ग्वालियर आगरा और उत्तरप्रदेश में
51 सुरवार गर्ग सूर्य कठियावाड में
52 सुर्वैया वशिष्ठ यदुवंश काठियावाड
53 मौर्य गौतम सूर्य बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान
54 टांक (तत्तक) शौनिक नागवंश मैनपुरी और पंजाब
55 गुप्त गार्ग्य चन्द्र अब इस वंश का पता नही है
56 कौशिक कौशिक चन्द्र बलिया आजमगढ गोरखपुर
57 भृगुवंशी भार्गव चन्द्र वनारस बलिया आजमगढ गोरखपुर
58 गर्गवंशी गर्ग ब्रह्मक्षत्रिय नृसिंहपुर सुल्तानपुर , मार्टींनगँज आजमगढ
59 पडियारिया , देवल ब्रह्मक्षत्रिय राजपूताना
60 ननवग कौशल्य चन्द्र जौनपुर जिला
61 वनाफ़र पाराशर, कश्यप चन्द्र बुन्देलखन्ड बांदा वनारस
62 जैसवार कश्यप यदुवंशी मिर्जापुर एटा मैनपुरी
63 नैय्दु वैक्ला सूर्य दक्षिण मद्रास तमिलनाडु अन्ध्र कर्नाटक में
64 निमवंशी कश्यप सूर्य संयुक्त प्रांत
65 वैनवंशी वैन्य सोमवंशी मिर्जापुर
66 दाहिमा गार्गेय ब्रह्मक्षत्रिय काठियावाड राजपूताना
67 पुण्डीर कपिल ब्रह्मक्षत्रिय पंजाब गुजरात रींवा यू.पी.
68 तुलवा आत्रेय चन्द्र राजाविजयनगर
69 कटोच कश्यप भूमिवंश राजानादौन कोटकांगडा
70 चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावत वशिष्ठ पंवार की शाखा मलवा 
रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड
71 अहवन वशिष्ठ चावडा, कुमावत खेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी
72 डौडिया वशिष्ठ पंवार शाखा बुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब
73 गोहिल बैजबापेण गहलोत शाखा काठियावाड
74 बुन्देला कश्यप गहरवारशाखा बुन्देलखंड के रजवाडे
75 काठी कश्यप गहरवारशाखा काठियावाड झांसी बांदा
76 जोहिया पाराशर चन्द्र पंजाब देश मे
77 गढावंशी कांवायन चन्द्र गढावाडी के लिंगपट्टम में
78 मौखरी अत्रय चन्द्र प्राचीन राजवंश था
79 लिच्छिवी कश्यप सूर्य प्राचीन राजवंश था
80 बाकाटक विष्णुवर्धन सूर्य अब पता नहीं चलता है
81 पाल कश्यप सूर्य यह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है
82 सैन अत्रय ब्रह्मक्षत्रिय यह वंश भी भारत में बिखर गया है
83 कदम्ब मान्डग्य ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण महाराष्ट्र मे हैं
84 पोलच भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण में मराठा के पास में है
85 बाणवंश कश्यप असुरवंश श्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में
86 काकुतीय भारद्वाज चन्द्र, प्राचीन सूर्य था अब पता नही मिलता है
87 सुणग वंश भारद्वाज चन्द्र, पाचीन सूर्य था अब पता नही मिलता है
88 दहिया कश्यप राठौड शाखा मारवाड में जोधपुर
89 जेठवा कश्यप हनुमानवंशी राजधूमली काठियावाड
90 पांड्य अत्रय चन्द अब इस वंश का पता नहीं
90 पठानिया पाराशर वनाफ़रशाखा पठानकोट राजा पंजाब
91 भैंसोलिया वत्स चौहान भैंसोल गाग सुल्तानपुर
92 चन्दोसिया भारद्वाज वैस सुल्तानपुर
93 चौपटखम्ब कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर
94 जायस कश्यप राठौड की शाखा रायबरेली मथुरा
95 जरोलिया व्याघ्रपद चन्द्र बुलन्दशहर
96 जसावत मानव्य कछवाह शाखा मथुरा आगरा
97 जोतियाना कश्यप कछवाह मुजफ़्फ़रनगर
98 घोडेवाहा मानव्य कछवाह शाखा लुधियाना होशियारपुर जालन्धर
99 कछनिया शान्डिल्य ब्रह्मक्षत्रिय अवध के जिलों में
100 काकन भृगु ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर आजमगढ
102 उदमतिया वत्स ब्रह्मक्षत्रिय आजमगढ गोरखपुर
103 भाले वशिष्ठ पंवार अलीगढ
104 भालेसुल्तान भारद्वाज वैस रायबरेली लखनऊ उन्नाव
105 जैवार व्याघ्र तंवर दतिया झांसी बुन्देलखंड
106 सरगैयां व्याघ्र सोमवंश हमीरपुर बुन्देलखण्ड
107 किसनातिल अत्रय तोमरशाखा दतिया बुन्देलखंड
108 टडैया भारद्वाज सोलंकीशाखा झांसी ललितपुर बुन्देलखंड
109 खागर अत्रय यदुवंश शाखा जालौन हमीरपुर झांसी
110 निर्वाण वत्स चौहान राजपूताना (राजस्थान)
111 जाटू व्याघ्र तोमर राजस्थान,हिसार पंजाब
112 नरौनी मानव्य कछवाहा बलिया आरा
113 भनवग भारद्वाज कनपुरिया जौनपुर
114 गिदवरिया वशिष्ठ पंवार बिहार मुंगेर भागलपुर
115 बघेल कश्यप सूर्य रीवा राज्य में बघेलखंड
116 कटारिया भारद्वाज सोलंकी झांसी मालवा बुन्देलखंड
117 रजवार वत्स चौहान पूर्व मे बुन्देलखंड
118 द्वार व्याघ्र तोमर जालौन झांसी हमीरपुर
119 इन्दौरिया व्याघ्र तोमर आगरा मथुरा बुलन्दशहर
120 छोकर अत्रय यदुवंश अलीगढ मथुरा बुलन्दशहर
121 जांगडा वत्स चौहान बुलन्दशहर पूर्व में झांसी
122 राठौर शान्डिल्य सूर्य सीतामढ़ी,हाजीपुर,मारवाड़


द्वारा - सुश्री शिखा सिंह 




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