शोभना सम्मान-2012

Sunday, September 30, 2012

राजपूत है तू


    • राजपूत है तू इस माटी का सपूत है तू ,
      शस्त्र है तेरा गहना,तुने खूब है इसको पहना,
      लड़ा तू रण में ,बसा तू मण में
      शीश उठा के , शीश है काटे
      बैरी को तुने धुल चटाई
      जण कि तुने जा बचाई
      रण मण जण में अभिभूत है तू
      राजपूत है तू इस माटी का सपूत है तू

      मान का अपने ध्यान तू रखना
      संस्कारो का सम्मान तू रखना
      नाम का अपने अभिमान न रखना
      अपनी एक पहचान तू रखना
      वीरता न्याय शौर्य बलिदान का प्रतीक है तू ,
      राजपूत है तू इस माटी का सपूत है तू ,

      उबाल खून का कम न हो
      चाहे अब कोई रण न हो
      दिखा दे दुनिया को अपनी ताकत,
      इस माटी पे अमिट  कर्म की लकीर है तू
      राजपूत है तू इस माटी का सपूत है तू ,

      मान ले अपने "उत्तम" भाई की ये बात
      तेरे आगे नहीं किसी की कोई औकात
      त्याग दे कलंकित रंग-रलियाँ
      संस्कारो का रंग भरता चल गलियाँ -गलियाँ
      सतकर्म को अपनी ढाल बना ले
      अपनी अमिट  पहचान बना ले
      इस माटी की अमिट तकदीर है तू
      राजपूत है तू इस माटी का सपूत है तू ..
      ...कुंवर उत्तम सिंह शेखावत

क्षत्रियो सिर कटवाओ नहीं गिनवाओ

चित्र गूगल से साभार 

   एक समय था जब राज्य सत्ता प्राप्ति के लिए सिर काटने पड़ते थे और कटवाने पड़ते थे| बिना बलिदान दिए न तो राज्य मिलता था और ना ही सुरक्षित रहता था| पर आज जमाना बदल गया है आज सत्ता प्राप्ति के लिए सिर कटवाने नहीं मात्र गिनवाने पड़ते है|यही कारण है कि जब सिर कटवाने पर सत्ता मिला करती थी उस वक्त सत्ता से दूर रहने वाली जातियां जो सिर कटवाकर सत्ता हासिल करने के बजाय घर में बैठकर या सत्ताधारियों की सेवा करना सत्ता प्राप्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण समझती थी| वे आज सिर गिनवाकर सत्ता में भागीदार बनी हुई है| क्योंकि लोकतंत्र में सिर गिनवाने के महत्व को उन्होंने बखूबी समझा है, पर सिर कटवाकर सत्ता हासिल करने वाली वीर जाति "क्षत्रिय" लोकतांत्रिक प्रणाली में सिर गिनवाकर आसानी से सत्ता प्राप्त करने जैसे आसान मर्म को समझ नहीं पाई और आज बड़ी आसानी से मिलने वाली सत्ता से दूर है|

यदि आपको मेरी इस बात पर कि -"सत्ता सिर गिनवाने पर मिलती है" भरोसा ना हो तो निम्न उदाहरण आपके सामने है जिन्हें पढकर आपको भी मेरी यह बात सही लगेगी कि -आजकल सत्ता सिर्फ गिनवाने यानी लामबंद होकर वोट देने पर ही हासिल होती है-
1- आज दलितों व पिछडों को जो आरक्षण दिया हुआ है उससे देश का हर वर्ग दुखी है पर इसे हटाने का कार्य तो सरकार ही कर सकती है| पर चूँकि दलित व पिछड़े लामबंद होकर उसी राजनैतिक दल के पक्ष में सिर गिनवाते है मतलब वोट देते है जो राजनैतिक दल उनके जातिय हितों की रक्षा करें| अब जो दल या सरकार ये जाति-आधारित आरक्षण बंद करने की बात सोचते है तो डर जाते कि ऐसा करने से दलित व पिछड़े नाराज हो जायेंगे और हमें तो वोट देंगे नहीं बदले में विपक्ष को वोट दे देंगे इससे वे सत्ता से बेदखल हो जायेंगे| अब ऐसा रिस्क कौन ले ?
मतलब साफ जाहिर है दलितों व पिछडों ने लोकतंत्र में सिर गिनवाने वाली महिमा को बड़ी अच्छी तरह समझा और उसका फायदा उठा राज कर रहे है| आज हर सरकारी नौकरियों में उनके लिए तो दरवाजे खुलें ही है चाहे उनमे योग्यता हो या ना हों| और यही नहीं कुछ स्वघोषित दलित नेता चाहे किसी दल की सरकार हो उसमे मंत्री पद पा ही जाते है महज इस योग्यता पर कि वे दलित है,पिछड़े है|

2-अब मुसलमानों का उदाहरण ले लीजिए| वे भी लामबंद होकर किसी एक के पक्ष में चुनावों में सिर गिनवाते है और जिस दल को उनके वोट चाहिए वो सरकार बनने के बाद उनके तुष्टिकरण करने का पुरा ध्यान रखता है| इसका उदाहरण आप आजादी के बाद से ही देख रहे है कि किस तरह कांग्रेस सरकार इनका तुष्टीकरण करती आ रही है यही नहीं कई मामले ऐसे भी आये है कि कांग्रेस ने इस वोट बैंक की खातिर देशहित को भी परे किया है| इनके तुष्टीकरण की खातिर देश के कानून तक बदलें गए है| ताजा उदाहरण आप मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी का देख सकते है कि किस तरह वह मुस्लिम वोट बैंक के लिए उनका तुष्टीकरण करने में लगी है|
कहने का मतलब साफ है मुस्लमान भारत में अल्पसंख्यक है फिर भी वे सरकारों व राजनैतिक दलों से जो चाहे पा लेते है, किसी भी सरकार को झुकाने का माद्दा रखते है वह भी सिर्फ सिर गिनवाने की कला के पीछे|
मतलब साफ़ है मुसलमानों ने भी लोकतंत्र की इस सिर गिनवाने वाली खास बात का मर्म समझ लिया और वे कम होने के बावजूद वो सब पा जाते है, जो वे चाहते है कोई भी दल उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता|

3- जाटों ने भी लोकतंत्र की इस सिर गिनवाने वाली बात को बड़ी बखूबी समझा और चुनावों में लामबंद हो वोट डालने शुरू किये उनके थोक वोट देखकर लगभग सभी राजनैतिक दलों ने चुनावों में जाट प्रत्याशी उतारने शुरू किये और वे अपने स्वजातीय द्वारा लामबंद होकर दिए वोटों से जीत कर सत्ता के भागीदार बने| यही नहीं राजस्थान के जाटों ने अपनी इसी लामबंदी का फायदा आरक्षण की सुविधा पाने में किया| उनके वोट बैंक को देखते हुए सरकार ने उनकी आरक्षण में शामिल करने की मांग मान ली| अब राजस्थान में कोई सरकारी कार्यालय ऐसा नहीं जहाँ जाट कर्मचारी नहीं|
और जाटों ने ये सब पाया लोकतंत्र में सत्ता के लिए सिर गिनवाने वाले आसान उपाय को अपनाकर| तो क्षत्रिय भाइयो उपरोक्त उदाहरण पढकर जो आपके सामने प्रत्यक्ष भी है आपको भी लोकतंत्र में सिर गिनवाकर सत्ता हासिल करने की महिमा के बारे में समझ आया होगा| अब जब सिर्फ सिर गिनवाने से सत्ता हासिल हो सकती है तो सिर कटवाने की बातें करने की क्या जरुरत ?

लोकतंत्र के इस मर्म को समझिए और लामबंद हो एक जबरदस्त वोट बैंक में अपने आपको तब्दील कर दीजिए कि सारे राजनैतिक दल आपके आगे पीछे हाथ जोड़कर भागे फिरें और आप उनसे देशहित में जो करवाना हो वो अपनी मर्जी से करवाएं| पर इसके लिए जरुरी है क्षत्रिय एकता| हम सब एक होकर, अपनी एकता के बल पर फिर अपना खोया गौरव पा सकते है| हमें यह एकता स्व-कल्याण और देशहित को ध्यान में रखकर ही करनी है न कि किसी अन्य जाति के खिलाफ| वैसे भी कोई भी क्षत्रिय अपने जन्म-जात संस्कारों के चलते दूसरी किसी जाति का बुरा सोच भी नहीं सकता| इतिहास गवाह है कि वे क्षत्रिय ही थे जिन्होंने सभी वर्गों,धर्मों के लोगों को साथ रखा|

नोट: आजतक जातिय व्यवस्था में मेरा भरोसा सिर्फ इतना ही था कि- जाति की बात सिर्फ शादी-ब्याह व अपनी रिश्तेदारी तक ही सीमित रखनी चाहिए|
पर सरकार व राजनैतिक दलों ने जिस प्रकार जातियों व संप्रदायों को उनके लामबंद होकर वोट देने के हिसाब से सुविधाएँ व विशेषाधिकार देकर जातिवाद को बढ़ावा दिया है मतलब जातिवादी व्यस्था को सुदृढ़ किया है ऐसे में जातिवाद से दूर रहने वाले लोगों के लिए जीना दुष्कर होता जा रहा है | जब सरकार ही जातिय आधार पर हमारा वर्गीकरण कर रही है तो हमें जातिवादी सोच रखने में बुराई क्यों लगे?


रचनाकार- श्री रतन सिंह शेखावत
फरीदाबाद, हरियाणा (भारत)

Wednesday, September 19, 2012

''कर्म से राजपूत बनिए''




मेरे क्षत्रिय वीरों और वीरांगनाओं,

मैं अपने कुछ भाइयों को हमेशा जोश में देखता हूँ,मारकाट की बातें करते 
हुए,मैं मानता हूँ के ये हमारे राजपूती खून का नसैर्गिक स्वाभाव है की वो 
उबाल जल्दी लेता है, लेकिन अब हमें ये हकीकत स्वीकारनी चाहिए की 
हमारे राजे रजवाड़े अब नहीं रहे, और अधिकांश लोगो के पास ज़मीनें भी 
नहीं रही,. अब आप किसी के राज्य पर हथियार लेकर चढ़ाई नहीं कर 
सकते,हमें अपनी विद्या शक्ति से ही जीत हांसिल करनी है, आप सबकी 
कोशिश ये होनी चाहिए की आप ऐसे पदों पर पहुचने का प्रयतन करें की 
दोबारा हमारा राज आ सके.कुछ प्रतिभाशाली राजपूत भाइयों और बहनों 
को राजनीती में भी अपनी धाक जमानी चाहिए,और अगर वो सफल होते 
हैं तो समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य को न भूलें,,,

अपने समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे 
शराब,,दहेज़,,झूठा अभिमान,,आदि को दूर करने का प्रयतन करें..वैसे तो 
''मदिरा पान'' और ''मांसाहार'' आज सभी जातियों में आरंभ हो गया है 
,,यहाँ तक कि उनमे भी जिनमे ये सर्वथा वर्जित व अधार्मिक कृत्य 
समझा जाता था..मैं इन दोनों में से कुछ नहीं करता,,मेरे कुछ मित्रों को 
इस बात पे हैरानी होती है कि मैं राजपूत होते हुए ऐसा नहीं करता,और 
उन्हें यह अविश्वसनीय लगता है जबकि यही सत्य है .लेकिन राजपूतों कि 
ऐसी छवि बनाने में कुछ हमारे साथियों का ही हाथ है जो बड़ी शान से 
शराब को पीना अपना गर्व समझते हैं ..मेरा सभी साथियों से अनुरोध है 
कि वो ऐसा कदापि ना करें,, आप ऐसे काम करके पुरे समाज का नाम 
खराब न करो...जय क्षात्र धरम,,आओ बुलंद करें राजपूताना. 

हम ऐरे गैरे नहीं, ''राजपूत'' हैं, इसका रखो ध्यान,

अपने शानदार ''राजपूती-चोले'' का हमेशा करो सम्मान,,

.............................(रघुवंशी अमित सिंह मुंढाड)

Monday, September 10, 2012

राजपूत समाज के विकास हेतु बदलाव जरूरी

  
  राजपूत समाज के विकास के लिए जरूरी है कि समाज मे बदलाव आए। गलत संस्कारो का खात्मा हो और अच्छे संस्कारो का निर्माण हो।

अपने समाज मे अच्छे लोग भी है तो बुरे लोग भी है और बुरे लोगो की बजाय अच्छे लोग ही ज्यदा है। पर जितने बुरे लोग है या बुराईया है । उनके पक्ष को कमजोर किया जाए । यह समाज मे सभी लोग प्रयास करेँ और संकल्प ले ।समाज के आचार को अच्छा बनाने के लिये यह जरूरी है समाज मे अच्छे विचारो का वातावरण बने।

विचारो को आचार तक पहुँचाने के लिए संस्कारो का पुल होना बहुत जरूरी है। आदमी जन्म से महान नही होता है ।वह भी संस्कारो की अग्नि मे तपता है तब ही महान बनता है।

संस्कार जीवन की संपदा है, संस्कार से ही हमारा जीवन सुंदर और संपन्न होता है। साहित्य,दर्शन,प्रवचन, वार्तालाप और वातावरण आदि संस्कार निर्माण के माध्यम बनते है। अच्छे समाज के लिए मनुष्य को प्रारंभ से ही अच्छा वातावरण और अच्छे संस्कार की आवश्यकता होती है।





चेहरे की सुंदरता जरुरी नही। चरित्र, व्यवहार ,विचार इनका सुंदर होना जरूरी है । जीवन धन दोलत से कभी सुंदर नही बनता जब संस्कारो की संपति आती है तभी वह सुंदर बनता है। अत: "संस्कारो की संपदा से ही जीवन सुँदर बनता है"




लेखक- श्री शेखर सिंह तंवर 

गुडगाँव, हरियाणा 






Thursday, September 6, 2012

राजपूत एकता




पने पूर्वजों का गौरवमय इतिहास,उनकी मान-मर्यादा एवं प्रतिष्ठा को कायम रखना प्रत्येक राजपूत का कर्त्तव्य है. राजपूतों को संगठित कर एक नए समाज का निर्माण करने तथा क्षात्र-धर्म की पुनर्स्थापना करना हमारा उद्देश्य होना चाहिए. जिन राजपूतों ने युगों-युगों तक अपनी वीरता और साहस का परिचय देते हुए विमल कीर्ति का ध्वज फहराते रहे तथा धरती पर अपराधियों एवं दुराचारियों को मारकर शांति स्थापित की थी, उन्ही के वंशजों का अस्तित्व, मान-मर्यादा एवं प्रतिष्ठा आज खतरे में है. आज समाज में घृणा, द्वेष, जाति-भेद चारो तरफ व्याप्त है, जिससे प्रत्येक नागरिक आज संतप्त एवं भयग्रस्त है. चारो तरफ अराजकता का माहौल व्याप्त है. आज हमारा समाज अँधेरे में भटक रहा है. इस परिस्थिति में कब तक मूकदर्शक बनकर देखते रहेंगे ? कब तक लोगों की चीख पुकार सुनते रहेंगे? राजपूत कुल में जन्म हुआ है तो समाज के प्रति जो हमारा कर्तव्य है उससे कबतक भागते रहेंगे? इसलिए राजपूत बंधुओं अपनी निद्रा का परित्याग करें और आगे बढ़ें. समाज में सक्रिय भूमिका निभाते हुए अपने भाई बंधुओं को सही मार्गदर्शन करें. क्योंकि हमारे समाज को देखने वाला कोई नहीं है चाहे जिसकी भी सरकार हो. किस तरह से हमारे हकों का हनन हो रहा है, यह सब आप स्वयं  देखते आ रहे हैं, हमारे मर्यादा का चीरहरण हो रहा है, और हम चुपचाप देखते रह जाते हैं. कलियुग में संघ में ही शक्ति निहित है. सदियों से शासन की बागडोर राजपूतों के हाथ में ही रही है. आज यह हमारे हाथों से निकल गया है जिसका परिणाम आज पूरा देश भुगत रहा है. आज संख्या बल के आगे सर्वगुण संपन्न होते हुए भी हमें झुकना पड़ रहा है. अतः शासन में आपकी पूरी भागदारी हो तभी देश सर्वगुण सपन्न होगा.

भयातुर होकर यह जनता आज कराह रही है,
द्वेष और घृणा से उबी तेरी ओर निहार रही है,
आज इस धरती की माटी तुम्हे पुकार रही है,
तुम्हारी सुस्ती व चुप्पी पे तुम्हे दुत्कार रही है,

जय राजपूत एकता.

लेखक- श्री रंजीत सिंह परमार 




Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...