देश के स्वतंत्र होने से पूर्व क्षत्रिय समाज का अपना एक गौरव
था, परन्तु स्वतंत्रता
के बाद एक साजिश के जरिये हमारे समाज को बदनाम किया गया और जैसा कि आप सभी जानते हैं
कि उस समय कांग्रेस का राज्य था, इसलिए ये समझना मुश्किल नहीं है कि वे कौन सी ताकतें थीं जो हमारे क्षत्रिय समाज की तरक्की से डरती थीं. क्षत्रिय
समाज को फिर से अपना सम्मान वापस पाने के लिए एक होना पड़ेगा और यह एकता केवल फेसबुक
जैसीं सोशल साइटों से नहीं आ सकती. इसके लिए हमें जमीनी लड़ाई लड़नी होगी. हमारा
अखिल भारतीय राजपूत युवा संघ बनाने का उद्देश्य उस जमीनी लड़ाई को लड़ना है और क्षत्रिय समाज
को फिर से गौरवांवित करने के लिए निम्न बिंदुओं पर विचार करना होगा : -
१. आज हम (क्षत्रिय समाज) जिन विधायकों/
सांसदों को जिताकर लोक सभा/ विधानसभा में भेजते हें वे हमारे समाज के हित में न
बोलकर मूक बाधित बन कर बैठे रहकर अपने स्वार्थ सिद्धि में लगे रहते हें, ऐसे व्यक्तियों का हमें
त्याग करना होगा.
२. आरक्षण हमारे समाज के लिए अभिशाप है, इसका आधार जातिगत न होकर आर्थिक होना चाहिए. आज आरक्षण के लाभ से अनुसूचित / पिछड़ी जातियों के चंद पैसे वाले लोगों (क्रीमीलेयर वर्ग) के परिवारों ने खुद को समृद्ध बना लिया है. परन्तु जो गरीब लोग इसके हकदार हें वो ६० साल बाद भी लाभान्वित नहीं हो पाए हें. हमें इसे उन सभी गरीबों के लिए पहुँचाना है जो इसके सच्चे हक़दार हैं.
३.एक कहावत है: जो लोग अपना इतिहास भूल जाते हैं, वे इतिहास रचने का सामर्थ्य नहीं रखते. इसलिए जरुरत है कि पाठ्यक्रम में महापुरुषों की जीवन गाथाओं को शामिल करना चाहिए, जिससे आने वाली पीढियाँ उनको और उनके योगदान को न भुला सकें.
४. आज राजनीतिक पार्टियों ने वोट बैंक की खातिर समाज को भिन्न वर्गों में बाँट रखा है, जो भविष्य क लिए बहुत घातक हो सकता है. जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद अनुसूचित / पिछडे बर्ग में आने वाली जातियां आज सवर्णों से भी आगे बढ़ गयी हें, फिर भी उनकी गणना अनुसूचित / पिछडे बर्ग में ही की जाती है और इस प्रकार समाज में असंतुलन बढ़ता ही जा रहा है. हमें इसे संतुलित करना होगा.
५. क्षत्रिय और मुस्लिम दोनों ही शासक रहे हें और दोनों में शासन करने के अपने-अपने हुनर थे. इतिहास गवाह है कि क्षत्रियों ने राम राज्य को अपना आधार मान कर शासन किया जबकि अधिकांश मुस्लिम शासकों ने केवल अत्याचार ही किया है. फिर भी राजनीतिक पार्टियाँ मुस्लिमों को अनेकों सुविधायें देने में जुटी हैं क्योंकि ये एक मत होकर वोट देते हैं जबकि क्षत्रिय समाज पूर्णतया विभाजित है. अतः जरुरत है कि सभी क्षत्रिय एक जुट होकर एक मंच पे आयें और अपनी पहचान बनायें.
६. आज अनुसूचित/पिछड़ी जातियों के लोग एकजुट होकर अपने समाज को आगे बढाने के लिये राजनितिक पार्टियों की ताकत से प्रदेश और देश दोनों को अपने हिसाब से चलाने में सक्षम हें, परन्तु क्षत्रिय समाज के लोग अपने गोत्र/कुल के आपसी भेदभाव से अनुसूचित/पिछड़ी जाति की पार्टियों से जुड़कर उनकी ताकत को मजबूत कर रहे हैं. हमें अपने सभी मतभेद भुलाकर, इस विभाजित ताकत को एकजुट करके क्षत्रिय समाज की तरक्की में उपयोग करना चाहिये और वास्तव में यही समय की मांग है.
२. आरक्षण हमारे समाज के लिए अभिशाप है, इसका आधार जातिगत न होकर आर्थिक होना चाहिए. आज आरक्षण के लाभ से अनुसूचित / पिछड़ी जातियों के चंद पैसे वाले लोगों (क्रीमीलेयर वर्ग) के परिवारों ने खुद को समृद्ध बना लिया है. परन्तु जो गरीब लोग इसके हकदार हें वो ६० साल बाद भी लाभान्वित नहीं हो पाए हें. हमें इसे उन सभी गरीबों के लिए पहुँचाना है जो इसके सच्चे हक़दार हैं.
३.एक कहावत है: जो लोग अपना इतिहास भूल जाते हैं, वे इतिहास रचने का सामर्थ्य नहीं रखते. इसलिए जरुरत है कि पाठ्यक्रम में महापुरुषों की जीवन गाथाओं को शामिल करना चाहिए, जिससे आने वाली पीढियाँ उनको और उनके योगदान को न भुला सकें.
४. आज राजनीतिक पार्टियों ने वोट बैंक की खातिर समाज को भिन्न वर्गों में बाँट रखा है, जो भविष्य क लिए बहुत घातक हो सकता है. जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद अनुसूचित / पिछडे बर्ग में आने वाली जातियां आज सवर्णों से भी आगे बढ़ गयी हें, फिर भी उनकी गणना अनुसूचित / पिछडे बर्ग में ही की जाती है और इस प्रकार समाज में असंतुलन बढ़ता ही जा रहा है. हमें इसे संतुलित करना होगा.
५. क्षत्रिय और मुस्लिम दोनों ही शासक रहे हें और दोनों में शासन करने के अपने-अपने हुनर थे. इतिहास गवाह है कि क्षत्रियों ने राम राज्य को अपना आधार मान कर शासन किया जबकि अधिकांश मुस्लिम शासकों ने केवल अत्याचार ही किया है. फिर भी राजनीतिक पार्टियाँ मुस्लिमों को अनेकों सुविधायें देने में जुटी हैं क्योंकि ये एक मत होकर वोट देते हैं जबकि क्षत्रिय समाज पूर्णतया विभाजित है. अतः जरुरत है कि सभी क्षत्रिय एक जुट होकर एक मंच पे आयें और अपनी पहचान बनायें.
६. आज अनुसूचित/पिछड़ी जातियों के लोग एकजुट होकर अपने समाज को आगे बढाने के लिये राजनितिक पार्टियों की ताकत से प्रदेश और देश दोनों को अपने हिसाब से चलाने में सक्षम हें, परन्तु क्षत्रिय समाज के लोग अपने गोत्र/कुल के आपसी भेदभाव से अनुसूचित/पिछड़ी जाति की पार्टियों से जुड़कर उनकी ताकत को मजबूत कर रहे हैं. हमें अपने सभी मतभेद भुलाकर, इस विभाजित ताकत को एकजुट करके क्षत्रिय समाज की तरक्की में उपयोग करना चाहिये और वास्तव में यही समय की मांग है.
लेखिका- सुश्री शिखा सिंह