क्षत्रिय तो क्षत्रिय है ।
वरना
क्षत्रियोँ जैसे कपङे पहनने से बोलने से , रहन सहन से खान पान से ,नामकरण से
उपनाम लिखने से राज पद तक पाने से, क्षत्रियोँ के साथ रिस्ते जोङने से अगर कोई
क्षत्रिय बन जाता तो आज तक हमारी सँख्या हिन्दुस्तान मे चार गुना हो जाती ।
ये क्षत्रिय समाज के लिये गौरव की बात है की आज लोग हमारी परम्पराऔ और
रहन सहन का अनुसरण कर रहै है। पर क्षत्रिय समाज को हासिये पे
धकेला जा रहा है। पर इसमे कुछ हद तक समाज के लोगो
का भी दोष है क्योकी हमने भी अपनी परम्पराऔ और सँस्कारो का त्याग
किया है अपने को कुछ ज्यादा ही
आधुनिकता मे घोल लिया है
हमारे समाज के गौरव और इतिहास को बनाये रखने के लिये युवा शक्ती को
बीङा उठाना होगा । इसमे किसीके कहने की या आज्ञा माँगने की जरुरत नहीँ है
क्योकी ये हमारा खुद का कर्तव्य है और हम इसके निर्वाहन से भाग नही सकते ।
ये हिन्दुस्तान अनगिनत वीरो के बलिदान की नीँव पे खङा है और उस बलिदान
मे क्षत्रोयोँ के योगदान को कोइ झुठला नही सकता ।
क्योकी ये सिलसिला मुगलो तुर्को ओर अँग्रैजो के समय से चला आ रहा है ।
और इस समाज ने वर्षो तक शाषन भी किया है ।
आज हमे फिर से हमारे समाज को एक करने के लिये आवाज उठाने की जरुरत है
तभी हमारा और हमारे हिन्दुस्तान का विश्व गुरु बनने का सपना साकार होगा ।
अगर हम अब भी नही चेते तो फिर उठना मुश्किल होगा।
अब हम मे से ही महाराणा प्रताप ,शिवाजी और दुर्गादास बनना होगा।
पहले हमे देश द्रोहियो मुगलो तुर्को और अँग्रैजो से लङना पङा था।
और आज हमारे सबसे बङे दुश्मन है नशाखोरी ,कूप्रथायेँ,
समाज कँटक अपने ही लोग और कुछ शाषकीय व्यवस्थायेँ जैसे
आरक्षण का जातीआधारित होना आदी ।
इनसे लङना हमारा कर्तव्य है और हर एक क्षत्रिय को ये सँकल्प लेना है
की हम देश हित मे और समाज के लिये समर्पित हो के काम करेँ।
हम जातीवाद के समर्थक नही है
पर सामाजिक मान मर्यादाओँ का सम्मान करने वाले है।
""एसे ही कोई क्षत्रिय नहीँ बनता
क्षत्रत्व आता है खानदान और सँस्कारो से ।
क्षत्रिय रत्न वो है जो तराशा जाता है
तलवारो की धारो से ।""
[ये विचार मात्र अपने समाज को जागृत करने के लिये है और अपने समाज की गलत धारणाओ को हटाने के लिये है कोई इसे अन्यथा ना ले हमारे समाज के बारे मे सोचना हमारा हक है ]
विचार -हरिनारायण सिह राठौङ
वरना
क्षत्रियोँ जैसे कपङे पहनने से बोलने से , रहन सहन से खान पान से ,नामकरण से
उपनाम लिखने से राज पद तक पाने से, क्षत्रियोँ के साथ रिस्ते जोङने से अगर कोई
क्षत्रिय बन जाता तो आज तक हमारी सँख्या हिन्दुस्तान मे चार गुना हो जाती ।
ये क्षत्रिय समाज के लिये गौरव की बात है की आज लोग हमारी परम्पराऔ और
रहन सहन का अनुसरण कर रहै है। पर क्षत्रिय समाज को हासिये पे
धकेला जा रहा है। पर इसमे कुछ हद तक समाज के लोगो
का भी दोष है क्योकी हमने भी अपनी परम्पराऔ और सँस्कारो का त्याग
किया है अपने को कुछ ज्यादा ही
आधुनिकता मे घोल लिया है
हमारे समाज के गौरव और इतिहास को बनाये रखने के लिये युवा शक्ती को
बीङा उठाना होगा । इसमे किसीके कहने की या आज्ञा माँगने की जरुरत नहीँ है
क्योकी ये हमारा खुद का कर्तव्य है और हम इसके निर्वाहन से भाग नही सकते ।
ये हिन्दुस्तान अनगिनत वीरो के बलिदान की नीँव पे खङा है और उस बलिदान
मे क्षत्रोयोँ के योगदान को कोइ झुठला नही सकता ।
क्योकी ये सिलसिला मुगलो तुर्को ओर अँग्रैजो के समय से चला आ रहा है ।
और इस समाज ने वर्षो तक शाषन भी किया है ।
आज हमे फिर से हमारे समाज को एक करने के लिये आवाज उठाने की जरुरत है
तभी हमारा और हमारे हिन्दुस्तान का विश्व गुरु बनने का सपना साकार होगा ।
अगर हम अब भी नही चेते तो फिर उठना मुश्किल होगा।
अब हम मे से ही महाराणा प्रताप ,शिवाजी और दुर्गादास बनना होगा।
पहले हमे देश द्रोहियो मुगलो तुर्को और अँग्रैजो से लङना पङा था।
और आज हमारे सबसे बङे दुश्मन है नशाखोरी ,कूप्रथायेँ,
समाज कँटक अपने ही लोग और कुछ शाषकीय व्यवस्थायेँ जैसे
आरक्षण का जातीआधारित होना आदी ।
इनसे लङना हमारा कर्तव्य है और हर एक क्षत्रिय को ये सँकल्प लेना है
की हम देश हित मे और समाज के लिये समर्पित हो के काम करेँ।
हम जातीवाद के समर्थक नही है
पर सामाजिक मान मर्यादाओँ का सम्मान करने वाले है।
""एसे ही कोई क्षत्रिय नहीँ बनता
क्षत्रत्व आता है खानदान और सँस्कारो से ।
क्षत्रिय रत्न वो है जो तराशा जाता है
तलवारो की धारो से ।""
[ये विचार मात्र अपने समाज को जागृत करने के लिये है और अपने समाज की गलत धारणाओ को हटाने के लिये है कोई इसे अन्यथा ना ले हमारे समाज के बारे मे सोचना हमारा हक है ]
विचार -हरिनारायण सिह राठौङ
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