शोभना सम्मान-2012

Friday, August 17, 2012

संपन्नों को आरक्षण क्यों?





ज़ादी के बाद भारतीय संविधान में अनुसूचित जाति/जनजाति एवं कमजोर वर्गों के लिए १० वर्ष के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की गयी थी, लेकिन आज़ादी के ६० वर्ष के बाद भी यह प्रावधान समाप्त नहीं हुआ. किसी पार्टी ने अथवा सरकार ने इसे हटाने की हिम्मत नहीं जुटा सकी. वरन दिनोदिन इसकी मांग और भी बढ़ती  ही जा रही है. आज आरक्षण की सीमा ५० प्रतिशत तक हो गयी है. आज स्थिति यह है कि हर वर्ग/हर जाति के लोग आरक्षण कि मांग कर रहे है. यह प्रावधान जातियों में विभाजन तथा विभेद पैदा करती है. इसका सीधा अर्थ यही है कि अनुसूचित जाति/ जनजाति, पिछड़ा, अतिपिछडा वर्ग में जन्म लेने पर वह विशेष सुविधा का अधिकारी बन जाता है और सवर्ण जाति में जन्म लेने पर वह अधिकार से वंचित हो जाता है. देश कि आज़ादी कि लडाई में न केवल इन्ही जातियों के लोगों ने लडाई लड़ी थी ऐसा नहीं है बल्कि सवर्ण जाति के लोगों ने भी इसमें बढ़-चढ़ कर भाग लिया था. ऐसी स्थिति में यह असमानता और विभेद क्यों? डॉ.भीमराव अम्बेदकर ने आरक्षण पर संविधान सभा में ३० नवम्बर,१९४८ के अपने भाषण में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा था कि समानता एवं आरक्षण में तालमेल बनाये रखने के आधार पर आरक्षण कि सीमा ५० प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती.उन्होंने कहा था कि इसका उद्देश्य समाज में समानता लाना है. इसे अनंत काल तक लागू नहीं रखा जा सकता. इसी को ध्यान में रखते हुए १० वर्ष कि सीमा निर्धारित कि गयी थी. निश्चित रूप से समाज के वंचित और शोषित समूह को न्याय मिलना चाहिए, परन्तु ऐसा करते समय यह देखा जाये कि संपन्न एवं सक्षम समूह ही आरक्षण का लाभ पीढ़ी-दर-पीढ़ी न उठा ले. इसका लाभ उन्हें ही मिलना चाहिए जो वास्तव में हक़दार हैं न कि उन्हें जो इसका लाभ उठाकर संपन्नता के दायरे में आ चुके है. आरक्षण का लाभ एक परिवार को एक ही बार मिलना चाहिए. आज इस बात की जाँच का विषय है कि सही मायने में आरक्षण जिन्हें मिलना चाहिए वे इससे आज भी वंचित हैं. दूसरी तरफ आरक्षण की व्यवस्था से मेधावी छात्रों का मेधा कुंठित हो रहा है. एक तरफ ९० प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले सड़क पर धूल फांक रहे है तो दूसरी तरफ ४० अंक प्राप्त करने वाले ऐशो आराम की जिन्दगी जी रहे है. यह लोकतंत्र का मजाक नहीं तो और क्या है? लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई जा रही है. ऐसा किसी भी देश में देखने को नहीं मिलेगा. प्रतिभावान छात्र इधर-उधर भटकने को मजबूर है वही दूसरी ओर अयोग्य व्यक्ति सत्ता की कुर्सी के लिए मारा-मारी कर रहे है. यह एकदिन वर्ग संघर्ष का आधार बन जायेगा और देशवासी आपस में ही लड़ने को मजबूर होंगे. अतः इस विषय पर सभी पार्टियों को सोचना विचारना होगा. लोकसभा में इसपर खुली बहस हो तथा संविधान में संशोधन करके इसे समाप्त करना ही उचित कदम होगा.


द्वारा-  श्री नीरज  तोमर

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