शोभना सम्मान-2012

Monday, April 23, 2012

कविता: हे क्षत्रिय उठ


हे क्षत्रिय! उठ!
अपनी निँद्रा को त्याग..!
 ले इस नये रण संग्राम मे भाग!
 भरकर अपनी भुजाओँ मेँ दम....
 मिटा दे लोगोँ के भ्रम..., देख आज तू क्योँ है?
 अपने कर्तव्योँ से दुर!
कर विप्लव का फिर शंखनाद,
 उठा तेरी काया मे फिर रक्त का ज्वार!
 हे क्षत्रिय! उठ!
अपनी निँद्रा को त्याग..!
 देख शिखाओँ को,
उनसे उठ रहा है धुआँ..,
उठ खडा हो फिर 'अक्षय' तू,
कर दुष्टोँ का संहार,
नीति के रक्षणार्थ बन तू पार्थ!
 हे क्षत्रिय! उठ!
अपनी निँद्रा को त्याग..!
कर विप्लव का फिर शंखनाद..
 याद कर अपने पुरखोँ के बलिदान को..,
 चल उन्ही के पथ पर,
कर निर्माण एक नया इतिहास,
 जिन्होने दिए तुम्हारे लिए प्राण...,
 कुछ कर कार्य ऐसा कि बढे उनका सम्मान
 हे क्षत्रिय! उठ! अपनी निँद्रा को त्याग..!
'अक्षय' खडा इस मोड पर,
रहा है तुझे पुकार...,
करा उसे अपने अंदर के..,
एक क्षत्रिय का साक्षात्कार!
 हे क्षत्रिय! उठ!
अपनी निँद्रा को त्याग..!

***'अक्षय' कुँवर विश्वजीत सिँह सिसोदिया 'जिन्दादिल'

6 comments:

  1. हे क्षत्रिय! उठ!
    अपनी निँद्रा को त्याग..!

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  2. हे क्षत्रिय! उठ!
    अपनी निँद्रा को त्याग..!

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  3. Very nice

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  4. This comment has been removed by the author.

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