शोभना सम्मान-2012

Thursday, September 6, 2012

राजपूत एकता




पने पूर्वजों का गौरवमय इतिहास,उनकी मान-मर्यादा एवं प्रतिष्ठा को कायम रखना प्रत्येक राजपूत का कर्त्तव्य है. राजपूतों को संगठित कर एक नए समाज का निर्माण करने तथा क्षात्र-धर्म की पुनर्स्थापना करना हमारा उद्देश्य होना चाहिए. जिन राजपूतों ने युगों-युगों तक अपनी वीरता और साहस का परिचय देते हुए विमल कीर्ति का ध्वज फहराते रहे तथा धरती पर अपराधियों एवं दुराचारियों को मारकर शांति स्थापित की थी, उन्ही के वंशजों का अस्तित्व, मान-मर्यादा एवं प्रतिष्ठा आज खतरे में है. आज समाज में घृणा, द्वेष, जाति-भेद चारो तरफ व्याप्त है, जिससे प्रत्येक नागरिक आज संतप्त एवं भयग्रस्त है. चारो तरफ अराजकता का माहौल व्याप्त है. आज हमारा समाज अँधेरे में भटक रहा है. इस परिस्थिति में कब तक मूकदर्शक बनकर देखते रहेंगे ? कब तक लोगों की चीख पुकार सुनते रहेंगे? राजपूत कुल में जन्म हुआ है तो समाज के प्रति जो हमारा कर्तव्य है उससे कबतक भागते रहेंगे? इसलिए राजपूत बंधुओं अपनी निद्रा का परित्याग करें और आगे बढ़ें. समाज में सक्रिय भूमिका निभाते हुए अपने भाई बंधुओं को सही मार्गदर्शन करें. क्योंकि हमारे समाज को देखने वाला कोई नहीं है चाहे जिसकी भी सरकार हो. किस तरह से हमारे हकों का हनन हो रहा है, यह सब आप स्वयं  देखते आ रहे हैं, हमारे मर्यादा का चीरहरण हो रहा है, और हम चुपचाप देखते रह जाते हैं. कलियुग में संघ में ही शक्ति निहित है. सदियों से शासन की बागडोर राजपूतों के हाथ में ही रही है. आज यह हमारे हाथों से निकल गया है जिसका परिणाम आज पूरा देश भुगत रहा है. आज संख्या बल के आगे सर्वगुण संपन्न होते हुए भी हमें झुकना पड़ रहा है. अतः शासन में आपकी पूरी भागदारी हो तभी देश सर्वगुण सपन्न होगा.

भयातुर होकर यह जनता आज कराह रही है,
द्वेष और घृणा से उबी तेरी ओर निहार रही है,
आज इस धरती की माटी तुम्हे पुकार रही है,
तुम्हारी सुस्ती व चुप्पी पे तुम्हे दुत्कार रही है,

जय राजपूत एकता.

लेखक- श्री रंजीत सिंह परमार 




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