१५ अगस्त, १९४७ को मिली तथाकथित आज़ादी के बाद राष्ट्रीय एकता के व्यापक
परिप्रेक्ष्य में तत्कालीन क्षत्रिय राजाओं ने अपने तमाम पैत्रिक हक़-हकुकों को
तिलांजलि देकर भारत की संप्रुभता में सम्मिलित होकर अपना सब-कुछ देश के लिए समर्पित
कर दिया फिर भी तत्कालीन क्षत्रिय राजाओं के इस अभूतपूर्व त्याग को सराहने की बजाय
एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत चरणबद्ध तरीके से प्रताड़ित करने का सिलसिला चलाया गया और हर स्तरपर न केवल क्षत्रिय नरेशों बल्कि समस्त क्षत्रिय
समाज को पीछे धकेलने के साथ-साथ बदनाम करने का व्यापक कुचक्र चलाया गया. यही नहीं
फिल्मों में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर हमें अन्यायी, अत्याचारी, सामंतवादी, दकियानूसी और लोकतंत्र विरोधी बताकर सोची समझी साजिश के तहत हमारे विरुद्ध
जनमानस के मन में विष का बीजारोपण करने का हर संभव प्रयास किया गया, जो आज भी
बदस्तूर जारी है.
नौकरियों
में आरक्षण लागूकर योग्य लोगों के लिए अवसर सीमित कर दिए गए हैं. इस प्रकार
राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से हमे पहले ही धकेल दिया गया था, अब हमारी सीमित आर्थिक साधन भी छीन लिया गया. वर्तमान में जहाँ मानवीय
मूल्यों का ह्रास हुआ है तथा मौजूदा लूटतंत्र बनाम लोकतंत्र राजनैतिक प्रणाली के
प्रशासन के रहमोकरम से अनैतिकता, मंहगाई
और भ्रष्टाचार का बोलबाला सर्वत्र व्याप्त है, इससे
क्षत्रिय समाज के समक्ष अनेक चुनौतियाँ खड़ी हो गयी है. राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर हमारे विस्तृत संगठन बल का अभाव है.
परिणामस्वरूप हम राष्ट्र की कुल आवादी के लगभग १६ प्रतिशत से अधिक जनसँख्या का
प्रतिनिधित्व करने के बावजूद भी अपनी विशेष पहचान एवं सत्ता में उपस्थिति को
बरकरार रखने में विफल किये जा रहे हैं. स्वतंत्रता के ६५ वर्ष के बाद भी शासन और
नीतियों में कोई बदलाव नहीं आया है. विकृत लोकतान्त्रिक व्यवस्था में भरपूर योगदान
करने के वाबजूद हमे योजनावद्ध तरीके से भूमिहीन एवं श्रीहीन किया गया तथा निरंतर
चरित्र हनन के विषाक्त षड़यंत्र को झेलता यह क्षत्रिय समाज अब कुंठित होने लगा है.
वर्तमान ठगतंत्र, लूटतंत्र
बनाम विकृत लोकतंत्र की राजनैतिक प्रणाली से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रहा है.
गलत समझौते, झूठे आश्वासन, व्यक्ति विशेष की चाटुकारिता तथा अन्याय की सीमा का उल्लंघन क्षत्रियों के
वश की बात नहीं है. लेकिन वर्तमान व्यवस्था में कुछ सामंजस्य व समझौते अनिवार्य हो
गए हैं, जिन्हें बारीकी से देखना और समझना क्षत्रियों का कर्तव्य है तभी हम विकास
के मार्ग पर आगे बढ़ सकेंगे. हमें एकतावद्ध होकर अपनी लडाई जारी रखनी होगी.
जय
राजपूत एकता! जय भारत!
द्वारा- श्री ब्रिजेश सिंह
No comments:
Post a Comment