शत्रु का जिसने खुली
छाती से मुकाबला किया, उसी वीर की वेदना यहाँ सो रही है | शः शांत ! वह कहीं अंगडाई लेकर उठ खड़ी न हो पड़े| संसार के इस उपेक्षित
एकांत में स्मृति आँख मिचोली खेल रही है| सदियों पहले यहाँ एक छोटा-सा बालक शत्रु से लड़ते हुए चिर निंद्रा में सो
गया था | हाथियों से टकराता हुआ, तीखी तलवारों से खेल
खेलता हुआ, रक्त से लथपथ होकर भी जब मेवाड़ की स्वतंत्रता को नही बचा सका, तब मृत्यु ने क्षत्रिय जाति को उस दिन उलाहना दिया था - "लोग मुझे क्रूर
कहते हैं, किंतु यह मेरा दुर्भाग्य
है, कि हे क्षत्रिय जाति
तू मुझसे भी कितनी क्रूर है, जो ऐसे सपूतों से अपनी कोख खाली कर मुझे सौंपती रही है| मुझे निर्दयी कहा
जाता है, किंतु मेरी गोद में जो
भी आता है, मैं उसे थपथपा कर चिर निंद्रा में सुला देती हूँ और हे क्षत्रिय जाति तू है जो उदारता की जननी
कहलाती है, किंतु तेरी गोद में जो आता है, उसे ही तू आग में झोंक देती है|" मृत्यु के उलाहने का क्षत्रिय जाति ने कोई उत्तर नहीं दिया| उसे उत्तर देने का समय ही नहीं था| यह संस्कृति और क्षत्रिय जाति का अस्तित्व ही उसका उत्तर है | तब मृत्यु ने उदास होकर
इतिहासकारों से प्रार्थना की थी, "मत भूलना स्वतंत्रता के अमर पुजारियों में इस छोटे बालक का नाम
लिखना कभी मत न भूलना !"
मृत्यु कहती
गई और क्षत्रिय जाति की कोख खाली होती गई | इतिहासकारों की कलम चलती गई, तीनों में होड़ चल रही थी | कोई नहीं थका | कोई नही थका | थका तो केवल
इतिहास, जो उपेक्षा की गोद में पड़ा हुआ अपनी ही छाती के घावों पर कराह रहा है | हाँ इसी जगह, जहाँ
इतिहास कराह रहा है, किसी दिन
मृत्यु और कर्तव्य का पाणिग्रहण हुआ था | यज्ञ
कुण्ड में होनहार की अन्तिम आहुति अग्नि के साथ अभी तक फड़क रही है | हथलेवा की मेहँदी अपमानित हुई सी विवाह मंडप में बिखरी पड़ी हुयी है।
द्धारा-
श्री भँवर सिंह चौहान
great work has been done by sumit pratap singh..:)
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