शोभना सम्मान-2012

Friday, November 16, 2012

भ्रात्र प्रेम (भाई का प्यार)


     श्री भरत जी का चरित्र समुद्र की भाँति अगाध है, बुद्धि की सीमा से परे है। लोक-आदर्श का ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण अन्यत्र मिलना कठिन है। भ्रात्र प्रेम की तो ये सजीव मूर्ति थे। भरत के समान शीलवान भाई इस संसार में मिलना दुर्लभ है। अयोध्या के राज्य की तो बात ही क्या ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी पद प्राप्त करके श्री भरत को मद नहीं हो सकता।' चित्रकूट में भगवान श्री राम से मिलकर पहले श्री भरत उनसे अयोध्या लौटने का आग्रह करते हैं, किन्तु जब देखते हैं कि उनकी रूचि कुछ और है तो भगवान की चरण-पादुका लेकर अयोध्या लौट आते हैं। नन्दिग्राम में तपस्वी जीवन बिताते हुए ये श्रीराम के आगमन की चौदह वर्ष तक प्रतीक्षा करते हैं। भगवान को भी इनकी दशा का अनुमान है। वे वनवास की अवधि समाप्त होते ही एक क्षण भी विलम्ब किये बिना अयोध्या पहुँचकर इनके विरह को शान्त करते हैं। श्री रामभक्ति और आदर्श भ्रात्र प्रेम के अनुपम उदाहरण श्री भरत धन्य हैं। ..यही तो हैं ''बुलंद संस्कार''

द्वारा -  कुँवर अमित सिंह 


सीनियर साइंटिफिक ऑफिसर, हरियाणा.

1 comment:

  1. काश इनसे लोग प्रेरणा ले सकें|

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