शोभना सम्मान-2012

Saturday, April 28, 2012

हरियाणा के जुझारु वंश मडाडां की गाथा




         सैकड़ों वर्ष पूर्व मडाड(कलायत) की सिमाएँ उत्तर मे अलावला गांव,उत्तर पश्चिम मे क्योडक,पश्चिम मे वग्धर नदी,दक्षिण मे हार,अहर और कुदाना,दक्षिण पुर्व मे बडौली,पुर्व मे यमुना नदी और उत्तर मे ऊंचा समाना-कमीपुरी होती हुई करनाल तक फैली हुई थी!ईनके उत्तर और पुर्व मे पुंडीर,दक्षिण मे तंवर और पश्चिम मे भाटी राज्य थे.मडाड वंश बहुत ही वीर,त्यागी और कट्टर देशभक्त था.ईनका कुरुक्षेत्र मे रहना मानो मनिकंचन का सहयोग था.क्योकी यह भुमी पुरातन काल से ही त्याग और बलिदान का प्रतीक रही है.यही एक मात्र कारण है की ईस वंश ने हमेशा राष्ट्रीय संग्रामोँ मे बढ-चढकर साथ देकर अपने युद्दकौशल,वीरता अपितु अपने साहस का प्रमाण दिया है.तुर्क,मुगल और शकहुनोँ के अनेक आक्रमण ईस धरा ने झेले है और हर युद्द मे ईस वंश ने अपने राष्ट्रप्रेम का अप्रतीम उदाहरण दिया है.गझनवी ने यहाँ कइ बार आक्रमण किया है.जितने भी राजा महाराजा दिल्ली गए,सभी यहाँ से गुजरते हुए गये है...कलायत के लोकजीवन मे आज भी लुटमार प्रसिद्द है.रोजमर्रा के आक्रमणोँ के चलते ईस वंश का ईतिहास नष्ट हो गया.

                                                   आज भी देश के अन्य भागोँ की अपेक्षा यहाँ उजडे हुए गांव अधिक मात्रा मे है.ईन आक्रमणोँ की वजह से ईस वंश को बहुत ही हानी हुई है एवं क्षती उठानी पडी है.ईसके विपरीत भी उन्होने विदेशी शत्रुओँ एवं आक्रमण कारीयोँ के सामने विवशता नही दिखाई.तरावडी की पहले युद्ध मे ईस वंश के वीरो ने सम्राट पृथ्वीराज चौहाण का साथ दिया था ऐसा बडवोँ द्वारा लिखे ईतिहास मे उल्लेख मिलता है.मोहम्मद घुरी को करारी हार का मजा चखा कर ईस वंश के रणबांकुरोँ ने घुरी को सम्राट के आगे नतमस्तक किया था.सन 1522 मे खानवा युद्ध मे ईन्होने महाराणा संग्राम सिँह जी उर्फ महाराणा सांगा को सहायता प्रदान की थी.सन 1398 मे जब तैमुर लंग समस्त पंजाब को रौंदता हुआ आंधी की तरह ईस क्षेत्र मे प्रविष्ट हुआ तो उसे स्थान स्थान पर करारी शिखस्त मिली.पोलड का वह स्थान आज भी ईन वीरोँ की बहादुरी को बयान करता है.असंध और सालवान मे भी मंडाडा ने तैमुर का डटकर मुकाबला किया.इतने बडे आक्रमण कारी,जिसने दिल्ली मे खुन की नदियाँ बहा दी थी,उसके जीवन की यह सबसे बडी हार थी.यही कारण था जिस वजह से तैमुर मेरठ से हरीद्वार के मार्ग से वापिस भागा था.बाबर के शासनकाल मे मोहन सिँह मंडाड ने असंख्य मुगलो को मौत की नीँद सुलाकर हिँदुत्व की रक्षा की थी.
                                                     औरंगजेब जैसे धर्मांध बादशहा के विरोध मे ईन्होने राठौडोँ को मार्ग दिखाया और दुर्गादास के संरक्षण मे कुँवर अजित सिँह को करनाल से घरौँडा और पानीपत के मार्ग से दिल्ली पहुँचाया.ब्रिटिश शासनकाल मे भी ईस वंश की वीरांगनाए कम नही है.कट्टर राष्ट्रधारा के कारण यह क्षेत्र हमेशा अंग्रेजोँ के आँखोँ का काँटा बना रहा.गांधीजी के असहयोग आंदोलन,भारत छोडोँ आंदोलन व अन्य सभी राष्ट्रीय आंदोलनो मे ईस वंश ने बढ चढकर भाग लिया.फलस्वरुप यहाँ के अनेक वीरोँ को अपने प्राणोँ की आहुती देनी पडीँ.वहाँ के लोकजीवन मे आज भी मंडाडा के वीरोँ की झलक मिलती है.
                                                     "मुस्लिम हो या गोरे,
                                                      उनसे खुब लढे मंडाडा के छोरे"
                                                       यह कहावत बहुत प्रसिद्द है.इसका भावार्थ यह है कि मडाड वंश जहाँ देश रक्षा के कार्यो मे सदैव आगे रहा वही अपने पडोसी चंद्रवंशी तंवर राज्य व अग्नीवंशी चौहाण राज्योँ को भी सदा सहायता प्रदान करते रहे.तभी यह वंश "बसे बडे मंडाडे" की उपाधी से सम्मानीत किया गया है.
अब ईस वंश के क्षत्रिय करनाल,कैथल,जीँद के लगभग 60 गांवो मे बसते है.इनके अलावा भिवानी,अंबाला,पंजाब के पटियाला,रोपड यु.पी के सहारनपुर,मेरठ,मुजफ्फरनगर और चंदीगढ मे भी इस वंश के लोग रहते है.


:-योगेश गर्ग/कलायत से


                                                  

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...