भौन मुख मंडल पर टेढी हुई,
नक्शा भुमंडल का बदल गया,
तलवार उठी जब हाथोँ मे,
दिल दुश्मन दल का दहल गया,
सिकंदर जैसो का विजय रथ,
ए क्षत्रिय तुने थाम दिया,
जब जब जरुरत आन पडी,
भारत माँ की ये पवित्र धरा,
महाराणा-शिवा के सपनो का बाग है,
लख-लख शिषो की भेँट चढा,
ईसे सोडीत धरा से सीँचा है,
वीर के ईस बाग को,
त्याग दे निज चिर निद्रा को,
ईतिहास क्षत्रियोँ का बिगडने न दे,
तुर्को के औलादोँ के,
षडयंत्रोँ की पहचान करो,
उठो जागो और रुकोँ नही,
सिँहासन तक प्रस्थान करो,
आतंक लुट के घोडो को,
निज भुजबल से अब ठहरा दो,
लाल किले की दिवारो पर,
ध्वज केसरीया अब लहरा दो,
दिल्ली की गद्दी पर अब तो,
क्षत्रिय परचम फहरा दो,
क्षत्रिय परचम फहरा दो,
लाल किले की दिवारो पर,
ध्वज केसरीया अब लहरा दो,
ध्वज केसरीया अब लहरा दो...
लेखक- कुँवर गोविन्द सिंह राठौर,दिल्ली
नक्शा भुमंडल का बदल गया,
तलवार उठी जब हाथोँ मे,
दिल दुश्मन दल का दहल गया,
सिकंदर जैसो का विजय रथ,
ए क्षत्रिय तुने थाम दिया,
जब जब जरुरत आन पडी,
भारत माँ की ये पवित्र धरा,
महाराणा-शिवा के सपनो का बाग है,
लख-लख शिषो की भेँट चढा,
ईसे सोडीत धरा से सीँचा है,
वीर के ईस बाग को,
त्याग दे निज चिर निद्रा को,
ईतिहास क्षत्रियोँ का बिगडने न दे,
तुर्को के औलादोँ के,
षडयंत्रोँ की पहचान करो,
उठो जागो और रुकोँ नही,
सिँहासन तक प्रस्थान करो,
आतंक लुट के घोडो को,
निज भुजबल से अब ठहरा दो,
लाल किले की दिवारो पर,
ध्वज केसरीया अब लहरा दो,
दिल्ली की गद्दी पर अब तो,
क्षत्रिय परचम फहरा दो,
क्षत्रिय परचम फहरा दो,
लाल किले की दिवारो पर,
ध्वज केसरीया अब लहरा दो,
ध्वज केसरीया अब लहरा दो...
लेखक- कुँवर गोविन्द सिंह राठौर,दिल्ली
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