एक मुक्त चिँतन.....!
जैसा के आप सभी जानते है की आज की युवा पिढी अपने कर्तव्य एवं संस्कारोँ से दुर होती जा रही है,वही दुसरी और युवा वर्ग मे कुतसित विचारोँ का प्रमाण बढ गया है...!आज का युवा कई व्यसनोँ के आधीन होता जा रहा है...!शराब,शबाब ,कबाब ये सारे शौख आज का युवा अपनी किशोरावस्था मे ही शुरु कर देता है.....!सिगारेट ,दारु,सिगार ये सारे व्यसन ईनके लिए पुराणे हो चुके है....("मै भी कभी सिगारेट के व्यसन का आधीन रह चुका हुँ")....कालांत र मेँ व्यसन भी उच्च प्रती केहो चुके है जैसे गांजा,चरस,अफीम आदि...जब ये सिगारेट पीते है तो एसा प्रतित होता है की कितनी फँक्ट्रियोँ का मालक है और कितनी नही....खैर वो बात अलग है की घर मे एक वक्त की रोटी मुनासिब नही होती ईन्हे......!शरा ब के व्यसन ने कई घर परीवार उजाड दिये पर हमने आज तक उससे कोई सबक नही लिया है....!स्वर्णिम ईतिहास और संस्कृति का अनमोल धन हमारे पास है और ईसका अगर हमे गर्व है तो वह गर्व पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करते हमारा गर्व कहा जाता है...?ईन व्यसनोँ के आधीन होकर हमने प्रगति के पथ को छोडकर दुर्गती के पथ को चुना है...,जिससे आनेवाली नस्लोँ को हमहमारे पुर्वजोँ की महान विरासत से कुछ भी न दे पाएंगे....!आईए मिलकर शपथ ले की ईन व्यसनोँ के आधिन न होकरईन्हे समाज से निष्कषित करेँ....!प्रस्त ुत है भ्राता अरविँद सिँह शक्तावत,खोडियाख ेरा की एक रचना
दारु पीणो छोड दो हुकुम,
दारु मे सब धन ग्यो पण अणां बोतलां ने नी फोड्या,
मनख सु पशु वेग्या पण हुकुम दारु पीणो नी छोड्या,
पण आपणे केईन कांई करनो..?
दारु ने आप अरोग्या,
पण दारु आपने अरोगगी,
दारु मे राज पराग्या,
पण ठाकरां री अकड नी गी,
पण आपणे केईन कांइ करनो..?
दारु मे रजपुत डुब्या,
बोटी वेगी तलवार री,
धार कलाळां रा घर बणग्या,
न कमीण वेग्या रे नार,
पण आपणे केइन कांइ करणो..?
दारु मे वंट तो निकल ग्यो,
पण रेगइ खाली डोपर,
घर मे उन्दरा करै अमावस,
पण बन्नासा बणै लोफर,
पण आपणे केइन कांइ करणो..?
दारु पीणो छोड दो हुकुम,
मानो मेवाडी सरदार रो केणो,
देख जमानो सुधरे जावै,
वरना म्हारे काइ लेणो देणो..?
पण आपणे केइन काइ करणो..?
(यह सभी मेरे निजी विचार है,जो मैने गंभीरता से आपके सामने,कृपया ईनपर विचार कर अमल करेँ,लाईककी कोई खास अपील नही है)
:-कुँवर विश्वजीत सिँह सिसोदिया
जैसा के आप सभी जानते है की आज की युवा पिढी अपने कर्तव्य एवं संस्कारोँ से दुर होती जा रही है,वही दुसरी और युवा वर्ग मे कुतसित विचारोँ का प्रमाण बढ गया है...!आज का युवा कई व्यसनोँ के आधीन होता जा रहा है...!शराब,शबाब ,कबाब ये सारे शौख आज का युवा अपनी किशोरावस्था मे ही शुरु कर देता है.....!सिगारेट ,दारु,सिगार ये सारे व्यसन ईनके लिए पुराणे हो चुके है....("मै भी कभी सिगारेट के व्यसन का आधीन रह चुका हुँ")....कालांत र मेँ व्यसन भी उच्च प्रती केहो चुके है जैसे गांजा,चरस,अफीम आदि...जब ये सिगारेट पीते है तो एसा प्रतित होता है की कितनी फँक्ट्रियोँ का मालक है और कितनी नही....खैर वो बात अलग है की घर मे एक वक्त की रोटी मुनासिब नही होती ईन्हे......!शरा ब के व्यसन ने कई घर परीवार उजाड दिये पर हमने आज तक उससे कोई सबक नही लिया है....!स्वर्णिम ईतिहास और संस्कृति का अनमोल धन हमारे पास है और ईसका अगर हमे गर्व है तो वह गर्व पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करते हमारा गर्व कहा जाता है...?ईन व्यसनोँ के आधीन होकर हमने प्रगति के पथ को छोडकर दुर्गती के पथ को चुना है...,जिससे आनेवाली नस्लोँ को हमहमारे पुर्वजोँ की महान विरासत से कुछ भी न दे पाएंगे....!आईए मिलकर शपथ ले की ईन व्यसनोँ के आधिन न होकरईन्हे समाज से निष्कषित करेँ....!प्रस्त ुत है भ्राता अरविँद सिँह शक्तावत,खोडियाख ेरा की एक रचना
दारु पीणो छोड दो हुकुम,
दारु मे सब धन ग्यो पण अणां बोतलां ने नी फोड्या,
मनख सु पशु वेग्या पण हुकुम दारु पीणो नी छोड्या,
पण आपणे केईन कांई करनो..?
दारु ने आप अरोग्या,
पण दारु आपने अरोगगी,
दारु मे राज पराग्या,
पण ठाकरां री अकड नी गी,
पण आपणे केईन कांइ करनो..?
दारु मे रजपुत डुब्या,
बोटी वेगी तलवार री,
धार कलाळां रा घर बणग्या,
न कमीण वेग्या रे नार,
पण आपणे केइन कांइ करणो..?
दारु मे वंट तो निकल ग्यो,
पण रेगइ खाली डोपर,
घर मे उन्दरा करै अमावस,
पण बन्नासा बणै लोफर,
पण आपणे केइन कांइ करणो..?
दारु पीणो छोड दो हुकुम,
मानो मेवाडी सरदार रो केणो,
देख जमानो सुधरे जावै,
वरना म्हारे काइ लेणो देणो..?
पण आपणे केइन काइ करणो..?
(यह सभी मेरे निजी विचार है,जो मैने गंभीरता से आपके सामने,कृपया ईनपर विचार कर अमल करेँ,लाईककी कोई खास अपील नही है)
:-कुँवर विश्वजीत सिँह सिसोदिया
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