शोभना सम्मान-2012

Tuesday, April 24, 2012

समाज हित में एक मुक्त चिंतन.....!

समाज हित में एक मुक्त चिंतन.....!

समाज हित में एक मुक्त चिंतन.....!
                            अगर हमें कुछ काम करना है तो वो है की हमें अपना जीवन बदलना
पड़ेगा हमें क्या अच्छा लगता है या लगा है ये बात हमें ओरो पर थोपना बंद करना है !
 हमें शास्त्र से सिध्ध की गयी बातो को अपनी आचारसंहिता (पोलिसी )बनाना है अगर हम ऐसा कर सकते है तो हमारी एकता संभव है.क्योंकि अगर हम गलत विषय या व्यक्ति की प्रसंशा करते है
 तो स्वाभाविक जो लोग नैतिकता और नीतिमत्ता में मानते है
                            वो हमारे साथ नहीं रहेंगे और फिरतो हमारी संगठन शक्ति मजबूत होना संभव नहीं है !सबसे प्रथम हमें हमारी दिशा तय करनी है की हमें करना क्या है? उसके बाद उसके लिए क्याकरना चाहिए? ,कैसे करना चाहिए ?,क्यूँ करना चाहिए ?,ये सोचना है,उसके बाद एक संविधान बनाना है वो
 ऐसा हो की उसमे बदल करना जरुरी न हो ,(समय के साथ बदलाव अगर जरुरी हो तो करना पड़े मगर फिर ऐसान हो की अपनी सहूलियत के लिए बार बार उसमे बदलाव लाते रहे जैसे की हमारासंविधान है !
शाशको ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए इतने संसोधन किये है कीमूल संविधान क्या था येही पता नहीं चलता ,हम अगर इतिहास की और देखेंगे तो हमें पता चलेगा की जब तक आचारसंहिता नहीं बदली थी हमें कोई रोकनेवाला या टोकने वाला नहीं था मगर एक बार हमने निजी स्वार्थ या किसी कारन वश उसमे बदलाव को मोका दिया की हमारी पहचान ही खतरे में पड गई ?
                             आज जय राजपुताना, और राजपूत के बारे में कई बाते पढने को और देखने को मिलती है लेकिन हमारे पुर्वोजोकी जो सिध्धिया थी और उन सिध्धियो को उन्होंने जिस तरह सम्हाला था उस में से हम क्या सीखे ? क्या जानते है हम उनकी जीवनशैली के बारेमे,उनकी तपश्चर्या के बारे में ,उनके त्याग के बारे में ,उनके बलिदान के बारे में,उनकी प्रेरणा के बारे मे,? खास करके आज का युवा जो राजपूत होने का गर्व करता है क्या वो नियमिततन ,मन ,धन ,की पवित्रता के लिए कुछ करता है !!
:-सोलंकी नरेंद्र सिंह

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