मैने चहु ओर विजय पताका लहराई!
मेरे नही शौर्य की!! नापी जा सकती गहराई!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
मैने आशुतोष का धनुष उठाया!
मैने गोवर्धन की जड हिलाई!!
ऐसा अपनी माँ का सपुत हुँ मै!
राजपूत हुँ मै!!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
मैने बंसी से महासंग्राम की गाथा गाई!
जिसमे असत्य ने की भरपाई!!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
मैने अन्योँ के लिए रक्त बहाया!
फिर मातृभु का भक्त कहलाया!!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
वृद्धोँ का रक्षक हुँ मै!
असुरोँ का भक्षक हुँ मै!!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
न्याय हेतु हलाहल मैने कंठ मे समाया!
मैने धर्म की नीती को अपनाया!!
ऐसा मातृभू का सपूत हुँ मै!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
मैने वीरता के नए आयाम बनाये!
मैने असूर राज के विरुद्द विद्रोह जगाये!!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
अंत मै प्रेम और शांती का संदेश फैलाया!
तब मै राजपूत कहलाया!!
:-'अक्षय' कुँवर विश्वजीत सिँह सिसोदिया 'जिन्दादिल'
मेरे नही शौर्य की!! नापी जा सकती गहराई!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
मैने आशुतोष का धनुष उठाया!
मैने गोवर्धन की जड हिलाई!!
ऐसा अपनी माँ का सपुत हुँ मै!
राजपूत हुँ मै!!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
मैने बंसी से महासंग्राम की गाथा गाई!
जिसमे असत्य ने की भरपाई!!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
मैने अन्योँ के लिए रक्त बहाया!
फिर मातृभु का भक्त कहलाया!!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
वृद्धोँ का रक्षक हुँ मै!
असुरोँ का भक्षक हुँ मै!!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
न्याय हेतु हलाहल मैने कंठ मे समाया!
मैने धर्म की नीती को अपनाया!!
ऐसा मातृभू का सपूत हुँ मै!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
मैने वीरता के नए आयाम बनाये!
मैने असूर राज के विरुद्द विद्रोह जगाये!!
कौन हुँ मै?
राजपूत हुँ मै!!
अंत मै प्रेम और शांती का संदेश फैलाया!
तब मै राजपूत कहलाया!!
:-'अक्षय' कुँवर विश्वजीत सिँह सिसोदिया 'जिन्दादिल'
अच्छा लिखा है.लिखते रहो...
ReplyDeleteहुकम
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